परेशानी और संघर्ष किसके जीवन में नहीं होता। कुछ लोग बहुत जल्दी हिम्मत हार जाते हैं, तो वहीं कुछ लोग परेशानियों का डट के सामना करते हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के छोटे से गांव सौड़ उमरेला में रहने वाली बबीता रावत ऐसी ही शख्सियत हैं। आज वह कड़ी मेहनत और लगन के साथ अपने खेतों में काम करती हैं और महीने पर लाखों की कमाई करती हैं। इसके साथ ही दूसरी महिलाओं को भी खेती करने के लिए प्रेरित करती हैं और उन्हें ट्रेनिंग भी देती हैं। तो चलिए जानते हैं बबिता रावत के संघर्ष के बारे में।
13 साल की उम्र से उठा रही हैं घर की सारी जिम्मेदारी
बबिता रावत (Babita Rawat) महज 13 साल की थीं जब उनके पिता बीमार हो गए। वहीं, उनके घर में कोई कमाने वाला भी नहीं था। इस वजह से घर की आर्थिक दिन ब दिन बिगड़ती चली गई। बता दें कि बबिता के 6 छोटे भाई और बहन भी हैं। घर के आम खर्चों के साथ साथ अपने भाई बहन की पढ़ाई का खर्चा उठाना बहुत मुश्किल था। हालांकि, बबिता ने हिम्मत नहीं हारी और अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से कुछ पैसे लेकर खेती करना शुरू कर दिया।
बंजर पड़ी 17 एकड़ की जमीन पर की खेती
बबिता ने बंजर पड़ी 17 एकड़ की जमीन पर खेती का काम शुरू कर दिया। यही वजह है कि वह अपने गांव में चर्चा की विषय बन गई। आज बबिता अपने गांव और इलाकें के कई लोगों को मशरूम, सब्जी की खेती, फलों की खेती, पशुपालन इत्यादि के बारे में बताती हैं।
कैसे कटती है बबिता की दिनचर्या?
बबिता (Babita Rawat) अपने खेतों में प्याज, धनिया, भिंडी, टमाटर, शिमला मिर्च, पपीता, अमरूद जैसी चीजों की खेती करती हैं। वह सुबह 4 बजे उठकर अपने पशुओं को चारा खिलाती हैं और फिर उनसे दूध निकालती हैं। फिर वह दूध बेचने के दूसरे गांव में जाती हैं। इसके बाद दिन भर वह खेतों में बिताती हैं।
उत्तराखंड सरकार से हुई सम्मानित
आज के समय में वह (Babita Rawat) उत्तराखंड में यूथ आइकॉन के तौर पर देखी जाती हैं। वह पोस्ट ग्रेजएट हैं। लोगों को खेती करने के तरीके बताने और खेती को एक नया रूप देने के वजह से वह उत्तराखंड सरकार से सम्मानित भी हो चुकी हैं।
रासायनिक खेती से जैविक खेती की तरफ
ट्रेनिंग वर्कशॉप अटेंड करने से बबिता को नई तकनीकों की जानकारी और जैविक खेती के लाभ पता चले। इसके बाद उन्होंने अपने पिता और भाई-बहनों की सहायता से धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर काम करना शुरू कर दिया।
बबीता रावत बताती हैं कि वह गोबर के गाय से वर्मिकम्पोस्ट बनाकर खेतों में प्रयोग करती हैं। वह अपनी फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए नीम के तेल और नीम पेस्ट का छिड़काव करती हैं। साथ ही उन्होंने गाय के गोबर और मूत्र से बने जीवामृत से फसलों की जड़ें मजबूत बनाई हैं। उनका कहना है कि यह बस कुछ साधारण सा बदलाव था। हालांकि, इससे परिणाम बहुत अच्छे मिले। साथ ही सेहत में भी सुधार आया।
इसके बाद बबिता ने पॉलीहाउस खेती का काम शुरू किया। उन्होंने पॉलीहाउस खेती की शुरुआत टमाटर की फसल से की। बता दें कि सिर्फ एक चक्र से उन्हें एक क्विंटल फसल प्राप्त हुई थी। उनका कहना है कि पारंपरिक खेती में उगाए गए टमाटर की फसल से दुगनी थी। आपको बता दें कि पॉलीहाउस साल भर आवश्यक तापमान बनाए रखता है, जिससे पूरे साल में एक चक्र से अधिक फसल उगाना मुमकिन है।
लेकिन वह कहती हैं कि उनकी सबसे ज्यादा फायदेमंद खेती मशरूम की रही है। मशरूम में ज्यादा निवेश की जरूरत भी नहीं पड़ती और परिणाम भी बहुत अच्छा मिलता है। बता दें कि मशरूम की खेती करने के लिए उन्होंने सोयाबीन और कृषि कचरे का प्रयोग किया था। उन्होंने महज 500 रुपये के निवेशसे मशरूम उगाना शुरू किया था।