100 से ज्यादा तालाब बनवा चुके हैं पॉन्डमैन रामवीर तंवर, बताया इनसे कैसे दूर होगी पानी की किल्लत

खेती किसानी में तालाबों का हमेशा से ही महत्व रहा है। ना सिर्फ कृषि कार्यों में बल्कि तालाबों के पानी से गांवों के लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को भी पूरा किया करते थे। लेकिन धीरे-धीरे जैसे लोग विकास की ओर बढ़े और बिजली के ट्यूबवेल और सबमर्सिबल आए तो तालाबों का महत्व कम होता चला गया क्योंकि अब उन्हें एक बटन पर पानी मिल रहा है। हालांकि आज के दौर में भी तालाब उतना ही जरूरी है जितना पहले हुआ करता था। 

तालाबों के महत्व और जरूरत को गांव डाढ़ा, जिला गौतमबुद्ध नगर के रामवीर तंवर खूब समझते हैं। इसलिए उन्होंने तालाबों पर इतना काम कर डाला है कि उन्हें हर कोई अब पॉन्डमैन कहता है। रामवीर ने किसान संवाद टीवी से बात करते हुए बताया कि कैसे तालाब किसानों की लाइफलाइन बन सकता है और कृषि कार्य में पानी की किल्लत से बचा जा सकता है।

रामवीर ने बताया, ”पहले दो तरह से तालाब बनाए जाते थे। एक गांव के लिए और दूसरा खेतों के लिए। आज भी सरकार खेत तालाब योजना देती है जो कि अलग अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से है। इसका मकसद यही है कि खेतों में इतना पानी बरसता है और बहकर चला जाता है। अगर उसी पानी को इकट्ठा कर लिया जाए तो आसपास की जमीन में नमी बनी रहेगी। दूसरा अगर बारिश ना हो या ट्यूबवेल ना चले तो पंप रखकर पानी निकाल सकते हैं।” 

हालांकि तालाबों की बेकद्री का बुरा असर आगे चलकर देखने को मिलेगा। रामवीर ने कहा, ”देखा गया है कि कई तरह की सुविधाएं मिल गई हैं। बिजली की मशीनें मिल गई है, सबमर्सिबल हैं और बिजली की सब्सिडी भी मिल जाती है। तो इसलिए लोगों ने तालाब को महत्व देना बंद कर दिया है। इसका नुकसान भी है। जितना पानी हमें चाहिए था, अब हम उसका दस गुना इस्तेमाल करते हैं। भविष्य में जिस पानी को 100 साल तक चला सकते थे, उसे 50 साल में खत्म कर लें। इसलिए तालाबों की जरूरत है। किसान अगर सरकारी योजना के तहत तालाब बनवाता है तो उसे सब्सिडी भी मिलती है। किसान अपनी जमीन पर तालाब बनवाकर लाइफटाइम पानी की सुविधा ले सकते हैं।” 

100 से ज्यादा तालाबों पर किया काम

100 से ज्यादा तालाबों पर किया कामरामवीर अब तक 100 से तालाबों पर काम कर चुके हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और दिल्ली में ये काम किए हैं। इन तालाबों के बारे में बताते हुए रामवीर कहते हैं कि इनमें कुछ तालाब ऐसे थे जो गांव के बीच में आ गए और पट गए थे या गांव के बाहर हैं और उनमें बारिश का पानी नहीं टिकता और कुछ नए बनाए गए।

रामवीर बताते हैं कि उन्हें इन तालाबों के काम के लिए गांव के सरपंच, जागरुक युवा या कलेक्टर बुलाते हैं। इसके बाद जहां से भी मदद मिलती है, सरकार से एनजीओ से या कॉरपोरेट से फिर इन तालाबों पर वो काम करते हैं। 

पॉन्डमैन सोशल मीडिया पर भी कैंपेन चलाते हैं #hashtagselfiewithpond, जिसमें लोग गंदे तालाबों के साथ सेल्फी लेते हैं और अपनी बचपन की यादों के बारे में बताते हैं लेकिन अब वो उसके पास से भी निकलना पसंद नहीं करते क्योंकि वो अब इतना गंदा दिखता है।

वैसे तो रामवीर की 17 लोगों की टीम है लेकिन उनके साथ वॉलेंटियर्स, पार्टनर एनजीओ, वेंडर वगैरह जुड़ते रहते हैं तो इस तरह लगभग 200 लोग हो जाते हैं जो साथ में काम करते हैं। 

रामवीर से लोग लेते हैं प्रेरणा

रामवीर से लोग लेते हैं प्रेरणारामवीर ने बताया कि उनको देख सुनकर बहुत से लोगों ने तालाबों पर काम करना शुरू किया। वो अगर कोई सेमीनार या वर्कशॉप करते हैं, तो वहां भी उन्हें कोई ना कोई ऐसे मिल जाता है तो नेचुरल चीजों के संरक्षण में दिलचस्पी लेता है। लेकिन ये काम इतना आसान भी नहीं होता। लोगों को लगता है कि वो जाएंगे और तालाब साफ हो जाएगा लेकिन जब जाते हैं तो कुछ असफल भी हो जाते हैं। लेकिन कुछ लोग बहुत अच्छा काम भी कर जाते हैं।

क्या आती हैं दिक्कतें?

पानी की किल्लत समाधान रामवीर कहते हैं, ”लोगों को समझाना ही मुश्किल हो जाता है कि तालाब बहुत जरूरी हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि बटन दबाने से पानी तो मिल ही जाता है तो फिर आज के आधुनिक युग में तालाबों का क्या ही काम। इसके अलावा स्किल टीम मिलना चैलेंज रहता है। हमारा मन तो करता है कि हम हजारों तालाबों पर काम कर दें लेकिन फाइनेंशियल सपोर्ट और रिसोर्स नहीं होते कई बार, तो वो चैलेंज हो जाते हैं। कई बार लोकल बॉडीज से क्लियरेंस बड़ी लेट मिलता है।” 

उन्होंने आगे कहा, ”अब हमारी कोशिश रहती है कि कम रिसोर्स में ज्यादा काम कर पाएं। क्योंकि इतने टाइम से काम करते हुए जानकारी भी हो गई है तो पता चल जाता है कि कब कैसे काम किया जा सकते हैं।”

अगर कोई अपने स्तर पर तालाबों के लिए काम करना चाहता है तो उसे कुछ बातों का ख्याल रखना होगा। ये ध्यान रखना चाहिए कि तालाब कितना बड़ा है और सरकार या स्थानीय अथॉरिटीज से एनओसी लेनी होती है, फंड जुटाने होते हैं। उस तालाब के बारे में कई जानकारी जुटानी होती है जैसे कि कहीं सरकार का उस तालाब को लेकर नवनीकरण का प्लान तो नहीं है क्योंकि फिर आप भी उस काम को करने जाएंगे उसका फायदा नहीं है। वहीं देखना होगा कि तालाब को लेकर कोई लीगल मामला तो नहीं चल रहा है और मदद के लिए कॉरपोरेट वगैरह से मदद ले सकते हैं।

सफर नहीं था आसान

जल संकट समाधान रामवीर को आज देश ही नहीं दुनियाभर में पहचान मिली है। लेकिन उनके लिए ये सफर आसान नहीं रहा था। उनके तो घर में भी किसी ने 10वीं क्लास भी पास नहीं की थी। पांच भाई बहनों में रामवीर ही ऐसे थे जिन्होंने 10वीं के बाद पढ़ाई की और कॉलेज गए। उन्होंने इंजीनियरिंग की और फिर मल्टीनेशनल कंपनियों में काम भी किया। फिर तालाब के काम में आ गए। लेकिन पहले हमेशा से डिसाइड नहीं था कि इसी काम में आना है। धीरे धीरे लगाव होता चला गया और इस बारे में जानकारी हुई कि काम किया जा सकता है और फिर घर पर खेती किसानी का माहौल तो था ही जहां से उन्हें तालाबों के महत्व के बारे में तो पता था ही।

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