बिहार के किसान ने बनाई नई पहचान: 12 एकड़ में मछली पालन के साथ कमल की खेती कर रहे मुन्ना

देशभर में खेती किसानी के साथ-साथ किसान मछली पालन भी करते हैं जिनसे उनको काफी मुनाफा होता है। लेकिन अब जैसे जैसे किसान जागरुक हो रही हैं वो अलग-अलग माध्यमों और तकनीकों को अपनाकर अपनी आय और बढ़ा रहे हैं। कई किसान ऐसे हैं जो मछली पालन के साथ-साथ तालाबों में कमल की खेती भी कर रहे हैं। इनमें से एक पश्चिमी चंपारण के किसान मुन्ना भी हैं। इन्होंने अपने पिता को मछली पालन करते हुए देखा था। मुन्ना ने अपने पिता के काम को जारी रखा और साल 2021 से अपने तालाबों में मछली पालन के साथ कमल उगाने भी शुरू कर दिए जिससे अब इनको बढ़िया मुनाफा हो रहा है और इन्होंने अपने आसपास के लोगों को रोजगार देना भी शुरू कर दिया है। तालाबों में वो 5 प्रकार की मछलियों का पालन कर रहे हैं। मछली पालन और कमल की खेती से दोनों की एक दूसरे से आपूर्ति हो जाती है। दरअसल कमल की खेती से मछलियों को उनका खाना भी मिल जाता है। 

कैसे आया आइडिया?

कमल की खेतीबाकी लोगों की तरह मुन्ना भी जागरुक किसान हैं। वो अकसर खेती किसानी से आय बढ़ाने के बारे में सर्च करते रहते थे। कृषि उद्योग के बारे में आजकल काफी आर्टिकल और यूट्यूब वीडियोज इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। उन्हें यहीं से ये पता चला कि कैसे तालाब में मछली पालन के साथ-साथ कमल की खेती भी की जा सकती है। उन्होंने देखा कि लोग अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसलिए उन्होंने भी अपने तालाब में ये काम शुरू कर दिया। उन्होंने शुरुआत में बीज डालकर देखे और इसका उन्हें अच्छा रिजल्ट मिला। 

मुन्ना बताते हैं कि उनके तालाब तो 30 एकड़ में हैं लेकिन फिलहाल वो 12 एकड़ में कमल के फूल लगाते हैं। इस 12 एकड़ के तालाब की इन्होंने घेराबंदी भी की है ताकि आसपास के माहौल से इन्हें बचाया जा सके। अब एक ही तालाब में दो चीजें हैं, तो इन्हें मैनेज करने के सवाल पर मुन्ना ने कहा कि इसमें बहुत ज्यादा देखरेख की जरूरत नहीं होती है। सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होता है कि तालाब में कमल के पत्ते बहुत ज्यादा ना हो जाएं। क्योंकि अगर ज्यादा पत्ते हो गए तो तालाब में नीचे मछलियों को ऑक्सीजन नहीं मिलेगी। 

मुन्ना इस 12 एकड़ तालाब की निगरानी करते रहते हैं और जैसे ही उन्हें लगता है कि तालाब में पत्ते ज्यादा हो गए हैं। वो इन्हें निकलवा देते हैं और ये पत्ते आसानी से मार्केट में बिक जाते हैं। वो इन्हें 25 पैसे या 50 पैसे की दर से बीच देते हैं। 

कमल की खेती में ध्यान देने वाली बातें

कमल की खेती में ध्यान देने वाली बातेंमुन्ना बताते हैं कि कमल की खेती के लिए एक बार बीज डालना होता है और इसके बाद इसमें हमेशा प्रोडक्शन होता है। उन्होंने बताया कि सर्दियों में इसके पत्ते पाले की वजह से खराब हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि कमल के पत्ते को धूप की जरूरत होती है। सर्दियों में ये काला पड़ जाता है और गल जाता है।

हालांकि जैसे ही फरवरी का महीना आता है ये दोबारा खिलने लगते हैं। कमल की खेती के कई फायदे हैं। उन्होंने बताया कि उनके आसपास के गांव में आज भी डिस्पोजल की जगह खाना खिलाने के लिए कमल के पत्तों का इस्तेमाल होता है। इसलिए जब भी शादी का सीजन शुरू होता है, उनके कमल के पत्तों की काफी बिक्री होती है। 

इसके अलावा कमल गट्टे तो बिकते ही हैं। वहीं नवरात्रे, दशहरा और दीवाली का त्योहार आने पर कमल के फूलों की बढ़िया बिक्री होती है। उन्होंने बताया कि कमल के फूल सबसे ज्यादा बरसात के मौसम में निकलते हैं। इन फूलों को स्टोर करके भी रखा जा सकता है। इसलिए वो कुछ फूलों को कोल्ड स्टोरेज में स्टोर करके रख लेते हैं जिससे उन्हें बाद में काफी मुनाफा होता है। इनके कमल के फूल ना सिर्फ बिहार बल्कि आसपास के राज्यों और यहां तक कि दिल्ली भी जाते हैं। 

कमाई और रोजगार

कमाई की बात करें तो मुन्ना बताते हैं कि प्रति एकड़ मछली पालन और कमल की खेती से साल का 5 लाख रुपया मुनाफा हो जाता है। वो बताते हैं कि कमाने वाले तो 8 से 10 लाख रुपये भी निकाल ले रहे हैं। खुद कमाई करने के साथ-साथ मुन्ना ने लोगों लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है। उन्होंने अपने साथ करीब 20 लोग काम पर भी रखे हुए हैं। वो अपने इलाके के लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार देना चाहते हैं। ताकि लोग बाहर ना जाएं। उन्होंने कहा कि अगर बाहर 500 रुपये मजदूरी मिलती है और यहां 300 रुपये का भी काम मिले तो लोग अपने इलाके में रहेंगे और पलायन नहीं होगा।

तालाब के लिए मिलती है सब्सिडी

तालाब के लिए मिलती है सब्सिडीमुन्ना को देखकर बहुत से लोगों ने मछली पालन का काम शुरू किया है। उन्होंने बताया कि आसपास के लोग उनसे इसके बारे में पूछते हैं। आज भी लोग उनसे सलाह लेने आते हैं। वो बताते हैं कि कैसे अगर वो मछली पालन शुरू करना चाहते हैं तो उन्हें सब्सिडी भी मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि सरकार जनरल कैटेगिरी के लोगों को 40% और एस/एसटी के लिए 90% सब्सिडी दी जाती है। हालांकि मुन्ना के पास जो लोग आए उनमें से ज्यादातर ने सिर्फ मछली पालन की काम शुरू किया है, फिलहाल वो साथ में कमल की खेती नहीं कर पाए हैं। जाहिर है इसमें और लेबर की जरूरत होगी और कुछ लोग बाकी खर्चे ना उठा पाएं।  

हालांकि मछली पालन हो या कमल की खेती, इन सबको शुरू करने से पहले मुन्ना किसानों को ये सलाह देते हैं कि वो अपने आसपास की मार्केट को देख आएं और समझ लें कि उनके प्रोडक्ट कि डिमांड है या नहीं और दूसरा उनके यहां से मंडी कितनी दूर है। इन सब के जायजे बाद ही उन्हे कोई भी काम शुरू करना चाहिए। क्योंकि फसल को एक बार लोग तैयार कर लेते हैं लेकिन उसकी मार्किटिंग की वजह से उन्हें अच्छा मुनाफा नहीं हो पाता है।

जिस तरह से मुन्ना तालाबों को बढ़ावा दे रहे हैं, उससे ना सिर्फ रोजगार के असवर पैदा हो रहे हैं बल्कि पर्यावरण को भी फायदा मिल रहा है। बारिश के पानी से जल संचयन में भी मदद मिलती है। तालाब रहने से उस इलाके के पानी का जल स्तर भी गिरता नहीं है। वरना आज के दौर में पानी की किल्लत तेजी से बढ़ रही है। मुन्ना के इस काम से इंसानों और प्रकृति के बीच एक अच्छा तालमेल भी बना हुआ है।

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