कौन हैं पद्मश्री कमला पुजारी, जिनके निधन पर दुखी हुए पीएम, राष्ट्रपति और सीएम

देशभर में इन दिनों जैविक खेती पर काफी जोर दिया जा रहा है। लेकिन हमारे देश में जैविक खेती एक वक्त पर परंपरा थी ना कि खेती करने की सिर्फ एक विधि। इस परंपरा को ओडिशा की रहने वाली कमला पुजारी बड़ी बखूबी निभा रही थीं। उन्होंने अपने जीवन में प्राकृतिक-जैविक खेती पर खूब काम किया। धान की सैकड़ों किस्मों को भी संरक्षित किया। उनके खेतीबाड़ी के काम को देखते हुए भारत सरकार ने भी उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। लेकिन प्रख्यात कमला पुजारी अब हमारे बीच में नहीं हैं। 74 साल की उम्र उन्हें दिल का दौरा पड़ा और अब वो हमारे बीच नहीं हैं। उन्हें बढ़ती उम्र की कई और दिक्कतें भी थीं और उन्हें कटक के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

उनके निधन पर ना सिर्फ उनके जानकार और परिवार के लोग बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी भी शोक जता रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में लिखा, ”श्रीमती कमला पुजारी जी के निधन से बहुत दुःख हुआ। उन्होंने कृषि, खास तौर से जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और देशी बीजों के संरक्षण में अहम योगदान दिया। जैव विविधता की रक्षा करने में उनके काम को वर्षों तक याद किया जाएगा। वह आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाने में भी एक प्रकाश स्तंभ थीं। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।”

आखिर कमला पुजारी ने अपनी जिंदगी में ऐसे क्या काम किए जो इतनी बड़ी हस्तियां भी उनके जाने पर उन्हें श्रद्धांजलि दे रही हैं। आइए जानते हैं।

धान की 100 से ज्यादा किस्में की संरक्षित

कमला पुजारी ओडिशा के कोरापुट जिले के पात्रपुट गांव की रहने वाली थीं। उनका जन्म एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था और वो परोजा जानजाति से ताल्लुक रखती थीं। उन्होंने धान की किस्मों पर बहुत काम किया था। उन्हें धान में काफी दिलचस्पी थी, इसलिए उन्होंने अपने जीवन में धान की कई किस्मों पर काम किया। साल 1994 में वो कोरापुट में एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के एक सहभागी रिसर्च प्रोग्राम की अगुआ रही थीं। इस दौरान उन्होंने चावल की किस्म ‘कालाजीरा’ का इजात किया। ये एक बढ़िया उपज देने वाली और अच्छी गुणवत्ता की किस्म है। इसके अलावा उन्होंने ‘तिली’, ‘मचाकांटा’, ‘फुला’ और ‘घनटिया’ जैसी दुर्लभ धान की किस्मों को भी बचाया है। कुल मिलाकर कमला पुजारी ने 100 से ज्यादा धान की किस्मों को संरक्षित किया है। इसके अलावा वो कई तरह की हल्दी, जीरा आदि की किस्मों को भी संरक्षित कर चुकी थीं।

जैविक खेती पर जोर

कमला पुजारी ने जैविक खेती पर हमेशा ही जोर दिया है। वो जैविक खेती करती थीं और बाकी महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित करती थीं। वो दूसरों को रासायनिक उर्वरक और खाद इस्तेमाल करने से मना करती थीं। उन्हें प्राकृतिक खेती के महत्व के बारे में अच्छे से पता था। उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को जैविक खेती सिखाई और जैविक खाद बनाना भी सिखाया। उनके इन प्रयासों को ना सिर्फ देश बल्कि दुनिया में भी पहचान मिली थी। संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने 2012 में कोरापुट को वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण कृषि विरासत स्थल (जीआईएएचएस) घोषित किया था। इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र ने कोरापुट को भूमध्य रेखा पहल पुरस्कार के लिए भी चुना गया था। पुजारी ने ये सम्मान साल 2002 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में लिया।

पद्मश्री से सम्मानित

कृषि में पुजारी का योगदान हमेशा से ही अहम रहा था। उन्हें भारत सरकार ने साल 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया। दिल्ली पहुंचकर जब उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से ये पुरस्कार मिला तो बाकी किसानों को और भी प्रेरणा मिला। जैविक खेती के प्रति लोगों में जानकारी और फैली। इससे पहले ओडिशा सरकार ने भी 2004 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ महिला किसान पुरस्कार से सम्मानित किया था, जबकि भुवनेश्वर में ओडिशा के प्रमुख कृषि अनुसंधान संस्थान, ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (OUAT) के एक बालिका छात्रावास का नाम उनके नाम पर रखा गया था। पुजारी को 2002 में दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ‘इक्वेटर इनीशिएटिव अवार्ड’ से भी नवाजा गया था।

क्या होती है जैविक खेती?

जैविक खेती में रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है। खेती के पारंपरिक तरीकों का ध्यान रखा जाता है। वहीं जैविक खाद का इसमें इस्तेमाल किया जाता है- जैसे वर्मीकंपोस्ट, गोबर की खाद, हरी खाद इत्यादि। जैविक खेती में फसलों का गुणवत्ता वाला उत्पादन होता है। वरना रिसर्च में तो रासायनिक वाली फसलों को स्लो पाइजन बताया जाता है। जैविक खेती की फसल का मार्केट में भाव भी काफी अच्छा मिलता है। किसान को खाद भी खरीदकर नहीं लानी पड़ती वो इसे अपने घर के आसपास की जमीन पर ही बना सकते हैं। और तो और जैविक खाद बनाने का बिजनेस भी आजकल काफी किया जा रहा है क्योंकि देशभर में अब जैविक खेती ने काफी जोर पकड़ रखा है।

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