Tuesday, October 15, 2024
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मटर की खेती कैसे करे ?: लाभ, तकनीक और देखभाल

मटर की खेती भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो किसानों को आर्थिक लाभ के साथ-साथ पोषण से भरपूर फसल भी प्रदान करती है। मटर एक शीतकालीन फसल है, जिसे सर्दी के मौसम में उगाया जाता है। मटर एक स्वादिष्ट सब्जी है जिसमे भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है जैसे की प्रोटीन फाइबर, विटामिन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते है इसके अलावा मटर की फसल से आने वाली फसलों को भी पोषण मिलता है क्युकी मटर की जड़े  नाइट्रोजन की स्तिर करने में मदद करती है. जिससे अगली फसलों को काफी मद्दद मिलती है.

इस पोस्ट में हम आपको मटर की खेती से सम्बंधित मटर की खेती कैसे होती है, बीज, सिचाई और मटर  की कितनी किस्मे होती है रोग नियंत्रण और फसल कटाई शामिल है 

मटर की खेती कैसे करे

 

मटर की उन्नत किस्में

मटर की निम्नलिखित किस्मे है जिनसे से कुछ प्रमुख फैसले है जैसे की आर्कल, विजयी, पन्त उपहार, सिद्धि और अजीत आदि यह मटर की किस्मे आसानी से बोई जा सकती है लकिन इन किस्मो को चुनते समय ध्यान देना चाहिए की कौन सी किस्म किस जलवायु में लगनी चाहिए

मटर एक शीतल जलवायु वाली फसल है जो ठंडी जगहों पर अच्छी तरह से उगती है. मटर के लिए अधिक गर्मी या अधिक ठण्ड मटर के लिए हानिकारक होती है मटर की खेती के लिए 10 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान आवश्यक होता है. 

मटर की फसल के लिए भूमि की तैयारी

मटर की खेती करने के लिए अच्छी भूमि का होना बहुत जरुरी है मटर के लिए जलनिकास वाली मिटटी और दोमट मिटटी बहुत अच्छी होती है और उससे अच्छे से जुताई करके तैयार करना अति आवश्यक है सबसे पहले भूमि की जुताई तीन से चार बार करे ताकि मिटटी का ढेला खत्म हो जाये और खेतो में जैविक खाद जैसे गोबर की खाद का उपयोग करना उपयुक्त होता है उसके बाद उर्वरक में 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए जिससे मटर की फसल अच्छी हो सके और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा मिले

बुआई का सही समय

मटर की बुआई का समय क्षेत्र की जलवायु पर निर्भर करता है। सामान्यतः, उत्तरी भारत में अक्टूबर से नवंबर तक मटर की बुआई की जाती है। बुआई करते समय ध्यान दें कि बीजों के बीच 4-5 सेमी की दूरी और कतारों के बीच 25-30 सेमी की दूरी होनी चाहिए।

मटर की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। पहली सिंचाई बुआई के 15-20 दिन बाद करें। इसके बाद  सिचाई की आवश्यक हो तभी करे ध्यान दें कि फसल के फूल आने के समय पानी की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए उस समय सिंचाई आवश्यक होती है।

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मटर के बीज की मात्रा और उपचार

मटर की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 80-100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों का उपचार करना बहुत आवश्यक होता है ताकि रोगों और कीड़ों से बचाव हो सके। बीजों को फफूंदनाशक दवाओं जैसे कार्बेन्डाजिम या थायरम से उपचारित करना चाहिए।

मटर की अच्छी पैदावार के लिए उचित उर्वरक प्रबंधन जरूरी होता है। फसल के बढ़ते समय नाइट्रोजन और फॉस्फोरस का संतुलित उपयोग करें। जैविक खादों का प्रयोग करने से मटर की फसल की गुणवत्ता और उपज दोनों में सुधार होता है।

खरपतवार मटर की खेती में एक बड़ी समस्या हो सकती है। फसल के शुरुआती चरण में खरपतवार हटाना बहुत आवश्यक होता है, ताकि फसल की अच्छी वृद्धि हो सके। मैन्युअल निराई-गुड़ाई या रासायनिक खरपतवारनाशक का प्रयोग करके खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।

रोग और कीट नियंत्रण

मटर की फसल में कुछ प्रमुख रोग और कीट लग सकते हैं, जैसे कि:

  • चूर्णी फफूंद (Powdery Mildew)
  • उखटा (Root Rot)
  • एफिड्स (Aphids) रोग और कीटों से बचने के लिए नियमित निरीक्षण आवश्यक है। जैविक या रासायनिक उपचार का उपयोग करके इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा, स्वस्थ बीज का उपयोग करना और फसल चक्रीकरण अपनाना भी प्रभावी होता है।

फसल कटाई का समय

मटर की फसल लगभग 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है। जब मटर की फलियाँ पूर्ण विकसित हो जाएं, तब उन्हें तोड़ लेना चाहिए। हरी फलियों के लिए कटाई तब करें जब फलियाँ ताजी और मुलायम हों।

भंडारण और विपणन

मटर की कटाई के बाद उचित भंडारण करना आवश्यक होता है ताकि फसल की गुणवत्ता बनी रहे। मटर को सूखे और हवादार स्थानों पर रखें ताकि नमी से फसल खराब न हो। मटर की फसल का बाजार में अच्छा मूल्य मिलता है, विशेषकर ताजे हरे मटर की मांग अधिक होती है।

आर्थिक लाभ और उपज

मटर की खेती एक लाभदायक व्यवसाय है, क्योंकि इसमें निवेश कम और लाभ अधिक होता है। प्रति हेक्टेयर 80-100 क्विंटल मटर की उपज प्राप्त की जा सकती है, जो किसानों के लिए एक अच्छा आर्थिक स्रोत बनता है।

मटर की खेती में चुनौतियाँ

मटर की खेती में सबसे बड़ी चुनौती जलवायु परिवर्तन, रोग और कीटों का प्रकोप होता है। साथ ही, समय पर सही देखभाल न करने से उपज पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, आधुनिक खेती तकनीकों और उन्नत बीजों का उपयोग करना आवश्यक है।

मटर की जैविक खेती

आजकल जैविक खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ रहा है। जैविक मटर की खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग न करके जैविक खादों और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। इससे न केवल फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है।

निष्कर्ष

मटर की खेती एक लाभदायक और सरल कृषि पद्धति है, जिसमें कम मेहनत और कम निवेश से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। सही समय पर बुआई, उन्नत किस्मों का चयन, उर्वरक और सिंचाई का सही प्रबंधन, और रोगों एवं कीटों से बचाव करके

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