कृषि में नवीनतम तकनीकों के उपयोग से किसानों को आय में हो रही बढ़ोतरी

ग्लोबल वार्मिंग के चलते भारत के कृषि उद्योग पर भी इसका प्रभाव पड़ा है। ग्लोबल वार्मिंग से क्लाईमेट चेंज हुआ और इससे अचानक मौसम बदल रहा है और तो और कीट और रोग भी बढ़े हैं। किसान पारंपरिक खेती से इन दिक्कतों का ठीक तरह से सामना नहीं कर पा रहे हैं। पानी की किल्लत भी एक बड़ी समस्या खेती में पैदा हो रही है। इन सब परेशानियों से पार पाने के लिए नई-नई कृषि तकनीकों का इजाद किया जा रहा है। इनसे ना सिर्फ फसल उत्पादन बढ़ रहा है बल्कि पानी बच रहा है और भूजल स्तर में भी सुधार हो रहा है।

केंद्र और राज्य सरकारें लगातार तकनीक बेस्ड खेती को बढ़ावा दे रही हैं। तमाम किसान अब इन नई तकनीकों को अपनाकर स्मार्ट फार्मिंग कर रहे हैं। हालांकि अभी भी ज्यादातर किसान नई तकनीक की जागरुकता से दूर हैं। उन्हें इनसे अवगत कराने की जरूरत है। क्योंकि बहुत से किसानों को लगता है कि उनके पास इन नई तकनीक के लिए पैसे नहीं है बल्कि सरकार काफी सब्सिडी भी देती है। स्मार्ट फार्मिंग से ना सिर्फ लागत कम आती है बल्कि उत्पादन भी बढ़ता है। आइए आपको कृषि में नवीनतम तकनीकों के उपयोग के बारे में बताते हैं।

कृषि इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT)

कृषि इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT)

ये एक तकनीक है जिसके जरिए फसल की निगरानी आराम से की जा सकती है। ना सिर्फ फसल बल्कि मिट्टी की नमी, फसल की सेहत, पशुधन की स्थिति, तापमान आदि को भी इसके जरिए ट्रैक किया जा सकता है। इसके जरिए किसान ये पता लगा सकते हैं कि उन्हें कहां और कितना पानी देना है। क्योंकि अकसर बड़े बड़े खेतों में पूरे एरिया में ही पानी दिया जाता है। 

कृषि में भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)

कृषि में भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)

जीआईसी रिमोट सेंसिंग उपकरणों और सॉफ्टवेयर की मदद से डेटा कलेक्ट करता है। इससे किसानों कई तरह की जानकारियां मिल जाती हैं। जैसे फर्टीलाइजर लेवल क्या है, मिट्टी की स्थिति कैसी है और ये भी मदद मिलती है कि कौन की फसल कहां लगा सकते हैं। पशुपालन में भी ये उपकरण काफी कारगर है। जीआईएस सॉफ्टवेयर के जरिए पशुओं की आवाजाही पर नज़र रखी जा सकती है। इससे किसानों को पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन क्षमता और पोषण के बारे में भी पता चलता है।

कृषि प्रौद्योगिकी में एआई/एमएल और डेटा विज्ञान

कृषि प्रौद्योगिकी में एआई/एमएल और डेटा विज्ञान

AI/ML और डेटा साइंस तकनीक के सहारे 3D लेजर स्कैनिंग की जा सकती है। वहीं मौसम के पूर्वानुमान के लिए स्पेक्ट्रल इमेजिंगत का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके जरिए कंप्यूटर विज़न से पौधों की ऊँचाई, चौड़ाई और दूरी पहचानी जा सकती है।

नियंत्रित वातावरण कृषि (सीईए)

नियंत्रित वातावरण कृषि (सीईए)

 

इसे ‘वर्टिकल फ़ार्मिंग या इनडोर फ़ार्मिंग’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें वातावरण को कंट्रोल करने की कोशिश की जाती है। इसमें पौधों के हिसाब से पानी, पोषक तत्व और प्रकाश जैसी सभी ज़रूरतें दी जाती हैं। इस तरह की खेती में पानी की 70% तक बचत की जा सकती है। मौसम के प्रतिकूल प्रभावों से भी छुटकारा मिलता है। पॉलीहाउस इसका एक उदाहरण माना जा सकता है।

रोबोटिक्स कृषि 

दुनियाभर में रोबोटिक्स कृषि का उपयोग शुरू हो चुका है। 2022 में, रोबोटिक्स कृषि का वैश्विक बाजार लगभग 5 बिलियन डॉलर था। इसे एग्रीबॉट्स के नाम से भी जाना जाता है। इसके जरिए बीज बोने, फसल की कटाई, निराई, छंटाई और पैकेजिंग, पशुधन प्रबंधन आदि किया जा सकता है।

ड्रोन

ड्रोन

ड्रोन का उपयोग तो अब भारत में भी शुरू हो गया है। इसके लिए राज्यों में फ्री ट्रेनिंग सेंटर खोले जा रहे हैं। किसान इसके जरिए पौधों की वृद्धि की निगरानी कर सकते हैं, रोगों का पता लगा सकते हैं,  खेत के तापमान बारे में पता चलता है। सिंचाई की जा सकती है और उर्वरकों का छिड़काव भी आसानी से किया जा सकता है। किसान का समय और लागत दोनों ही कम हो जाती है। 

कृषि जैव प्रौद्योगिकी

कृषि जैव प्रौद्योगिकी तकनीक में जेनेटिक इंजीनियरिंग शामिल होती है। इसके जरिए बीजों और पशुधन पर प्रयोग करके उन्हें और गुणवत्ता वाला बनाने की कोशिश की जाती है। चूंकि जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से दिख रहा है इसलिए इसमें जलवायु-प्रतिरोधी फसलें बनाए जा रही हैं।

मोबाइल डिवाइस, सैटेलाइट तकनीक और इंटरनेट आधारित कृषि हमारे देश में हो ही रही है। इसके अलावा पानी की बचत के लिए स्प्रिंकल और ड्रिप इरीगेशन भी काफी कारगर साबित हुई हैं। लेकिन किसानों को इन्हें अपनाने में देरी लगती है। क्योंकि छोटे किसानों का एक बड़ा वर्ग कम पढ़ा लिखा है जो नई तकनीकों को इस्तेमाल करने से कतराते हैं। ऐसे में नई तकनीकों के जरिए स्मार्ट फार्मिंग करना इनके लिए मुश्किल हो जाता है।

हालांकि युवा बढ़ चढ़कर तकनीक का सहारा ले रहे हैं और उन्हें इसके नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं। जहां पहले सेबों और अन्य फसलों की हाथ से ग्रेडिंग की जाती थी वहीं अब इसके लिए मशीन आ गई है। फलों को कैटेगिरी के हिसाब से अगर किसान अलग कर लेते हैं तो उन्हें बाजार में कैटेगिरी के हिसाब से अपने फल बेचने पर मुनाफा ज्यादा होता है। उनका मुनाफा 25 से 30% बढ़ जाता है।

वहीं तमाम यंत्र और उपकरण तो मार्केट में पहले से ही मौजूद हैं जिन्होंने श्रमिकों पर निर्भरता कम कर दी है। इससे जाहिर है लागत में कमी आती है। किसान कम समय में ज्यादा उत्पादन करने में सक्षम हो पा रहा है। पॉल्ट्री फार्मिंग में भी ऐसे उपकरण लगाए जा रहे हैं जिनसे 40 हजार से ज्यादा मुर्गियों पर एक साथ निगरानी की जा सके। उन्हें खाना पानी देने का प्रोसेस भी आसान हो गया है। वहीं उनके लिए तापमान मेंटेन रखने में मदद मिलती है।

इसलिए अब ये किसानों पर है कि वो भी पूरी लगन के साथ नई तकनीकों को अपनाकर खेती करें क्योंकि सरकार और कृषि वैज्ञानिक तो लगातार है इसे बढ़ावा दे रहे हैं। पानी कम, फसल ज्यादा और अच्छी कीमत। किसानों की ये समस्या हल हो जाती है तो उनकी आय खुद बा खुद बढ़ जाएगी।

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