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दूरदर्शी सोच और समाज कल्याण की मिसाल थीं अहिल्याबाई होलकर, कृषि क्षेत्र में भी रहा अहम योगदान

महारानी अहिल्याबाई होलकर को आज भी उनकी दूरदर्शी सोच, बेहतरीन शासन और मंदिरों के पुनर्निर्माण जैसे कार्यों के लिए जाना जाता है। वहीं उनका सामाजिक कल्याण और कृषि क्षेत्र में भी अहम योगदान रहा।

Rohit Maurya by Rohit Maurya
May 31, 2024
in प्रगतिशील किसान
दूरदर्शी सोच और समाज कल्याण की मिसाल थीं अहिल्याबाई होलकर, कृषि क्षेत्र में भी रहा अहम योगदान

महारानी अहिल्याबाई होलकर को आज भी उनकी दूरदर्शी सोच, बेहतरीन शासन और मंदिरों के पुनर्निर्माण जैसे कार्यों के लिए जाना जाता है। उन्होंने काशी विश्वनाथ और सोमनाथ मंदिर जैसे मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। वहीं उनका सामाजिक कल्याण और कृषि क्षेत्र में भी अहम योगदान रहा। वो मालवा साम्राज्य की महारानी थीं। पति और ससुर की मृत्यु के बाद उन्होंने करीब 30 साल तक शासन किया और उन्हें सबसे सफल मराठा शासकों में गिना जाता है। आज के दौर में भी राजमाता कही जानें वालीं अहिल्याबाई का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। तभी पिछले साल 2023 में महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र के अहमदनगर का नाम बदलकर ‘अहिल्या नगर’ कर दिया था। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी भी जब पिछले साल सोमनाथ मंदिर गए तो वो महारानी अहिल्याबाई होलकर का जिक्र करना बिल्कुल नहीं भूले। आइए उनके जीवन पर एक नजर डालते हैं।

शुरुआती जीवन
अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को पुणे के पास अहमदनगर स्थित चौंडी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम मनकोजी राव शिंदे था जो कि गांव के मुखिया भी थे। उस समय जब लड़कियों को पढ़ाई लिखाई से दूर रखा जाता था, तब उनके पिता ने उन्हें थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना सिखा दिया था। हालांकि उनकी छोटी उम्र में शादी हो गई। अहिल्याबाई की शादी इंदौर के होलकर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हारराव होलकर के बेटे खंडेराव से हुई थी। सन 1745 में अहिल्याबाई को पहले बेटा हुआ जिसका नाम मालेराव था औ उसके बाद उन्हें एक बेटी हुई और इसका नाम उन्होंने मुक्ताबाई रखा।

जीवन में आया बड़ा बदलाव
अहिल्याबाई के पति खंडेराव एक वीर और निपुण योद्धा थे। लेकिन 1754 के कुम्भेर युद्ध में वो मारे गए। इसके बाद मल्हार राव होलकर ही शासन चला रहे थे लेकिन उन्होंने अपनी बहु अहिल्याबाई को भी राजकाज के काम से अवगत कराया। लेकिन 12 साल बाद 1766 में मल्हार राव का भी निधन हो गया। जिसके बाद अहिल्याबाई ने राज्य के शासन की बागडोर संभाली। उन्होंने माहेश्वर शहर को अपनी राजधानी बनाया और कुशलता से शासन करना शुरू किया। लेकिन दुखों का पहाड़ अहिल्या पर टूटे ही जा रहा था। एक साल बाद ही उनके बेटे मालेराव की 1767 में मृत्यु हो गई।

टूटे मंदिरों को फिर से बनवाया
अहिल्याबाई होलकर के तमाम कामों में से एक धर्म का काम-काज भी है। उन्होंने टूटे हुए मंदिरों को फिर से बनवाया। उन्होंने अपने राज्य ही नहीं बल्कि देश के अलग अलग हिस्सों में मंदिरों के पुनर्निमाण का काम किया। उन्होंने सिर्फ मंदिर ही नहीं बनवाए बल्कि इनमें विद्वान भी नियुक्त किए। अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर को भी नया रूप दिया था। ये मंदिर करीब साढ़े तीन हजार साल पुराना बताया जाता है और इस मंदिर पर भी बार-बार हमले हुए थे। आज आप जो इस मंदिर का स्वरूप देखते हैं, वो 1780 में अहिल्याबाई ने ही बनवाया था।

इसी तरह कहा जाता है कि मुगल शानस के दौरान सोमनाथ मंदिर को कई बार तोड़ा और लूटा गया था। अफगानिस्तान के गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी ने भी सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था। महारानी को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने 1783 में पुणे के पेशवा के साथ मिलकर इसका जीर्णोद्धार करवाया।

कृषि में महत्तवपूर्ण योगदान
अहिल्याबाई एक किसान परिवार से ही थीं, इसलिए उन्हें कृषि की भी समझ थी और वो किसानों की हालत समझती थीं। अपने शासनकाल में उन्होंने किसानों का लगान कम कर दिया था। उन्होंने सिंचाई योजनाओं पर काफी ध्यान दिया था क्योंकि वो पानी की महत्ता को समझती थीं। उन्होंने कुएं, तालाब काफी बनवाए ताकि जल सरंक्षण किया जा सके। अहिल्याबाई ने बंजर पड़ी जमीनों पर भी खेती करवाई। उन्होंने उस समय की तकनीक का इस्तेमाल किया। मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए एक खेत में बदलकर बदलकर फसलें लगवाईं। वो इस बात का ध्यान रखती थीं कि अगर कोई किसान गरीब है या सूखे जैसी स्थिति आई है तो किसान को बीज समेत कृषि के अन्य संसाधन उपलबद्ध कराए जाते थे। अहिल्या ने इस बात पर जो दिया कि किसान कपास, नील और तम्बाकू जैसी फसल भी उगाएं जिससे उनकी आय बढ़े और इसके साथ ही वो पारंपरिक फसल भी लगाएं जिससे उनके अन्न भंडार भी भरे रहें।

अहिल्याबाई होलकर के अन्य कार्य
अपने शासनकाल में उन्होंने भोजनालय,बावरियों औ प्याऊ का भी निर्माण कराया। अहिल्या ने कलकत्ता से बनारस तक की सड़क बनवाई थी। उन्होंने तमाम सड़कों का सुधार करवाया। उन्होंने धर्मशालाएं बनवाई जो कि मुख्य तीर्थस्थानों जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास थीं। वो साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के उत्थान के लिए जानी जाती हैं। तमाम अन्य राजाओं की तरह उन्होंने सिर्फ अपना राजकोष नहीं बढ़ाया बल्कि इसका इस्तेमाल उन्होंने किले, विश्राम गृह, कुएं और सड़कें बनवाने पर किया।

बताया जाता है कि वो अपनी प्रजा से रोज बात करती थीं और उनकी समस्याएं सुनती थीं। वो लोगों के साथ ही त्योहार मनाती थीं। दरबारी भी उनके काम काज से काफी खुश रहते थे। अपने दरबार में अहिल्या हमेशा ही न्यायपूर्ण रहती थीं। उनके यहां एक और अच्छी बात ये थी कि जाति भेद नहीं था। सभी प्रजा सामान रहती थी और सभी को पूरा सम्मान दिया जाता था।

महिलाएं के लिए किया काम
अहिल्याबाई ने विधवाओं के लिए काफी काम किया। उन्होंने मराठा प्रांत में विधवाओं के लिए कानून में बदलाव किया। पहले कानून था कि अगर कोई महिला विधवा हो जाए और उसका पुत्र न हो, तो उसकी पूरी संपत्ति राजकोष में जमा कर दी जाती थी, लेकिन अहिल्याबाई ने इस कानून को बदला और ये कर दिया कि विधवा महिला अपने पति की संपत्ति को अपने पास ही रखेगी। इसके अलावा उन्होंने महिला शिक्षा पर भी ध्यान दिया।

लोग तो उन्हें देवी तक कहने लगे थे। उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य किए, वो दया करुणा से भरपूर एक कुशल शासक ही कर सकता है।

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