जैविक खेती के लाभ: कैसे शुरू करें

भारत में 70 प्रतिशत आबादी खेती-बाड़ी से जुड़ी हुई है। हालांकि इनमें लघु और सीमांत किसान ज्यादा हैं, जिनके पास काफी कम जोत की भूमि है। इसमें वो ज्यादा से ज्यादा फसल उगाने की कोशिश करते हैं। जिसके चलते दिक्कत ये आती है कि रासायनिक उर्वरक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इससे फसल उत्पादन तो बढ़ जाता है लेकिन रासायनों की वजह से ना सिर्फ इंसानों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है बल्कि मिट्टी कम उपजाऊ हो रही है और प्रदूषण भी बढ़ रहा है।

इसलिए अब बहुत जरूरत है कि तकनीक का सहारा लेते हुए अपने पारंपरिक तरीकों की तरफ भी लौटा जाएगा। मिट्टी और खुद के स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती को पूरी तरह से अपनाना होगा।  

जैविक खेती क्या है?

जैविक खेती की परिभाषा की बात करें तो ये पर्यावरण की शुद्ध बनाए रखने में मदद करती है। जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते हैं, उन्हीं को खेती में इस्तेमाल किया जाता है।

जैविक खेती में जीवाणु खाद, गोबर की खाद, हरी खाद, कम्पोस्ट खाद, फसल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। 

क्यों करें जैविक खेती?

जैविक खेती के बारे में कहा जाता है कि इसमें फसल उत्पादन कम होता है लेकिन लोगों का ध्यान जैविक खेती के दूसरे फायदों पर नहीं जाता है। जैसे कि भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है। खेतों को जल्दी जल्दी सींचने की जरूरत कम पड़ती है। क्योंकि जमीन की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं और पानी का वाष्पीकरण कम होता है। वहीं जैविक खेती करना रासायनिक खेती से कम खर्चीला भी होता है। रासायनिक उवर्रक को जहां खरीदना पड़ता है वहीं किसान जैविक खाद अपने आसपास ही बना सकते हैं। 

भले ही जैविक खेती से फसल उत्पादन थोड़ा कम हो सकता है लेकिन बाजार में उसके पैसे भी अब ज्यादा मिलते हैं। वहीं हम मिट्टी में रसायन नहीं डालेंगे तो पानी और मिट्टी प्रदूषित होने से बचेंगे।

जैविक खेती के फायदे

भूमि उपजाऊ बनी रहती है।

जमीन की जल धारण क्षमता बढ़ती है।

सिंचाई अंतराल में वृद्धि आती है।

भूमि के जलस्तर में वृद्धि होती है।

रासायनिक उर्वरक पर निर्भरता कम होती है

किसानों की आय बढ़ेगी क्योंकि बाजार में जैविक उत्पाद महंगे हैं।

वातावरण प्रदूषण में कमी आती है।

कचरे का उपयोग खाद बनाने में, होने से बीमारियां कम होती हैं।

इन तरीकों को अपनाकर कर सकते हैं जैविक खेती

वर्मी कंपोस्ट: वर्मी कंपोस्ट जैविक खाद का एक बढ़िया उदाहरण हैं। इसे केंचुओं और कचरे की मदद से बनाया जाता है। केंचुएं सेन्द्रिय पदार्थ ह्यूमस और मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर अन्य परतों में फैलाते हैं। इससे जमीन पोली होती है और हवा का आवागमन बढ़ जाता है। इसका एक फायदा ये भी होता है कि जलधारण क्षमता में बढ़ जाती है।

हरी खाद: मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना है तो इसमें हरी खाद बहुत कारगर मानी जाती है। इस प्रक्रिया में हरे दलहनी पौधों को उसी खेत में उगाकर जुताई कर मिट्टी में मिला देते हैं। हरी खाद के लिए मुख्य रूप से सन, ढेंचा, लाबिया, उड़द, मूंग इत्यादि फसलों का इस्तेमाल किया जाता है।

गोबर खाद: खेती में गोबर खाद का चलन बहुत पुराना है। गांवों में पशुपालन और खेती साथ होते थे। पशुओं के गोबर का इस्तेमाल ना सिर्फ कंडे बनाने में होता था बल्कि इसे खाद में भी उपयोग किया जाता था।

गौमूत्र: गौमूत्र से फसलों में रोग एवं कीड़ों से छुटकारा मिलता है। एक कांच की शीशी में गौमूत्र भरकर धूप में रख दें। 10-12 दिन इसे रखने के बाद 12-15 मि.मी. गौमूत्र प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेयर पंप से छिड़काव करें। इसका फसलों में बुआई के 15 दिन बाद और फिर हर 10 दिन में छिड़काव करें। 

नीम के उत्पाद: नीम पत्ती के घोल का छिड़काव करने से इल्ली की रोकथाम होती है। जबकि नीम की खली से दीमक और व्हाइट ग्रब एवं अन्य कीट नष्ट हो जाते हैं। 

मट्ठा: मट्ठा और छाछ का इस्तेमाल तो हम इंसान खूब करते हैं लेकिन ये पौधों के लिए भी लाभकारी होता है। मिर्ची, टमाटर आदि फसलों में अगर चुर्रामुर्रा या कुकड़ा रोग है तो एक मटके में छाछ डाकर उसका मुंह पोलीथिन से बांध दें। इसके बाद इसे 30-45 दिन तक मिट्टी में गाड़ दें। फिर निकाल कर छिड़काव करें। ये कीटों से बचने का काफी सस्ता उपचार है।

मिर्च/लहसुन: वैसे तो ये खुद फसल है। लेकिन इसका उपयोग बाकी फसलों को स्वस्थ रखने के लिए किया जाता है। आधा किलो हरी मिर्च, आधा किलो लहसुन पीसकर चटनी बनाकर पानी में घोल बनायें। इसे छानकर 100 लीटर पानी में घोलकर, फसल पर छिड़काव करें। ये भी एक बढ़िया कीटनाशक माना जाता है।

लकड़ी की राख: लोग गांवों में पहले चूल्हे की राख का कई तरह से इस्तेमाल किया जाता था। ये फसल में एफिड्स एवं पंपकिन बीटल का नियंत्रण करता है। 

ट्राईकोडर्मा: ये एक जैविक फफूंद नाशक है जो पौधों में मिट्टी और बीज जनित बीमारियों को दूर करता है। इसके इस्तेमाल की बात करें तो 3 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 10-15 दिन के अंतर पर खड़ी फसल पर 3-4 बार छिड़काव करें।

लोगों में हो प्रचार

जैविक खेती के इतने फायदे हैं लेकिन लोगों में इसकी जागरुकता कम है। लेकिन तमाम किसान जैविक खेती की तरफ लौटे हैं। बाजार में भी आप देखें तो जैविक खेती से होने वाले उत्पाद आपको महंगे मिलेंगे। लेकिन ये सब बातें और जैविक खेती के फायदे लोगों तक कम ही पहुंच रहे हैं। इसलिए इसकी जागरुकता जरूर पहुंचानी चाहिए। अब ये कैसे होगा? इसके प्रचार-प्रसार के लिए झांकी, पोस्टर्स, बेनर्स, साहित्य, एकल नाटक, कठपुतली प्रदर्शन वगैरह गांवों कस्बों में होने चाहिए। 

अगर मिट्टी और वातावरण खुशहाल बने रहेंगे तो इंसान भी स्वस्थ रहेगा और हिंदुस्तान जहर मुक्त खान खाएगा। क्योंकि रासायनिक खादों को वैसे भी स्लो पाइजन कहा जाता है। जो धीरे धीरे इंसानों को बीमार कर रहा है। इससे बचने के लिए जैविक खेती को अपनाना ही होगा। आप भी अपने आसपास जैविक खेती और रासायनिक खेती के फर्क को देखें और समझें। अगर उपभोक्ता भी ज्यादा से ज्यादा जैविक उत्पाद अपनाएंगे तो किसान भी जैविक खेती की तरफ ज्यादा बढ़ेंगे।

 

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