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DSR Method: किसान DSR तकनीक से कमा सकते हैं मोटा मुनाफा, कम पानी में होगी धान की बंपर फसल

DSR तकनीक के जरिए आपकी मेहनत, पानी, इंधन और पैसा बचता है। यहां तक कि सरकार DSR तकनीक से खेती करने पर सब्सिडी भी देती है।

Rohit Maurya by Rohit Maurya
June 24, 2024
in तकनीक और यंत्र
DSR Method: किसान DSR तकनीक से कमा सकते हैं मोटा मुनाफा, कम पानी में होगी धान की बंपर फसल

धान खरीफ सीजन की सबसे प्रमुख फसल है। गर्मियों के बाद बरसात के मौसम में धान की खेती जोरो शोरों से होती है। काफी लोग भारत में चावल खाना पसंद करते हैं। इसलिए देश के तमाम राज्यों में इसे उगाया जाता है। इस फसल के लिए काफी ज्यादा पानी की जरूरत होती है। इसलिए सूखाग्रस्त क्षेत्रों में इस फसल को उगा पाना काफी मुश्किल होता है। क्या आप जानते हैं कि एक हेक्टेयर धान की खेती के लिए करीब 50 लाख लीटर पानी की जरूरत होती है।

धान की रोपाई से पहले इसकी नर्सरी तैयार करनी पड़ती है और बाद में इसकी रोपाई की जाती है। पानी के साथ-साथ मजदूरी भी लगती है। यानी धान की खेती में खर्चा काफी हो जाता है। लेकिन अब इसका भी एक तोड़। इस विधि के जरिए धान की खेती में पानी के संकट को हल किया जा सकता है और इसमें खर्चा भी कम आता है।

डीएसआर (DSR) तकनीक (सीधी बुआई)

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DSR विधि यानी डायरेक्ट सीडेड राइस को सीधी बुआई भी कहते हैं। ये एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए खेतों में बीज सीधे मशीन की सहायता से बोए जाते हैं। इसमें नर्सरी लगाने और फिर रोपाई की जरूरत नहीं होती है। इसे दो तरह से किया जा सकता है। पहली विधि में इसमें खेत तैयार करके ड्रिल द्वारा बीज बोया जाता है। बुआई के समय खेत में नमीं होनी जरूरी है। वहीं दूसरी विधि में खेत में लेव लगाकर अंकुरित बीजों को ड्रम सीडर से बोया जाता है। बुआई से पहले खेत को समतल कर लेना चाहिए।

सीधी बुआई की मशीनें

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धान की सीधी बुवाई के लिए कई तरह की मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जीरो टिल ड्रिल, मल्टीक्राप और सुपरसीड जैसी मशीनों को उपयोग होता है। अगर जहां ट्रैक्टर नहीं पहुंचते हैं तो उनके लिए सीधी बुआई में बैल चलित सीड ड्रिल भी आती है। खेतों में अगर फसलों के अवशेष हैं तो उसमें हैपी सीडर या रोटरी डिस्क ड्रिल जैसी मशीनों चलाई जा सकती हैं।

कैसे है फायदेमंद

* धान की खेती में जब खेतों में पानी भरकर रखा जाता है तो उससे मीथेन गैस उत्सर्जन भी बढ़ता है। लेकिन इस विधि में काफी मीथेन गैस निकलती है।
* पारंपरिक धान की खेती में खेतों में पानी भरकर उसे ट्रैक्टर से मचाया जाता है जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में फर्क पड़ता है और आने वाली फसलों का उत्पादन कम हो सकता है।
* सीधी बुआई में 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस विधि से धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी भरे रखने की जरूरत नहीं होती है। रोपण विधि में जहां 25-30 सिंचाई लगती है, वहीं सीधी बुआई में 15-18 सिंचाई ही लगती है।
* सीधी बुआई में मजदूरी भी कम लगती है। देखा जाए तो 25-30 श्रमिक प्रति हेक्टेयर की बचत होती है।
* नौ कतार वाली जीरो टिल ड्रिल से करीब एक घंटे में ही एक एकड़ में धान की सीधी बुवाई हो जाती है। यानी समय की यहां साफतौर पर बचत हो रही है।
* धान की नर्सरी उगाने, खेत मचाने और खेत में पौध रोपाई का खर्च पूरी तरह से बच जाता है।
* सीधी बुआई से इंधन की भी बचत होती है। इससे प्रति हेक्टेयर 35-40 लीटर डीजल की बचत होती है।
* इस विधि से बीजों की भी बचत होती है। किसान जीरो टिलेज मशीन में खाद और बीज डालकर आसानी से बुवाई कर सकते हैं।
* सीधी बुआई विधि में धान 7 से 10 दिन पहले ही पक जाता है जिससे किसान रबी की फसल समय से उगा सकते हैं।

सीधी बुआई में आपको खरपतवार का खास ध्यान रखना होता है। क्योंकि खरपतवार की वजह से धान की पैदावार में गिरावट आ सकती है। सीधी बुआई के जरिए अगर आप बीज डालते हैं तो अंकुरित होने से पहले पेंडीमिथालिन 30 प्रतिशत की 3.3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के दूसरे-तीसरे दिन बाद छिड़काव करें।

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अब बात करें कि सीधी बुआई में खेत में कितना उर्वरक और खाद डालनी होती है तो बता दें कि सीधी बुवाई वाले धान के खेत में प्रति हेक्टेयर 120-140 किलो नाइट्रोजन, 50-60 किलो फास्फोरस और 30 किलो पोटाश की जरूरत होती है। लेकिन अगर सीधी बुआई से अच्छा प्रोडक्शन लेना है तो 20 जून तक बुआई कर लेनी चाहिए। इसके अलावा याद रखें कि बलुई मिट्टी में सीधी बुवाई न करें, इसके लिए हमेशा दोमट मिट्टी वाले खेत में बढ़िया होते हैं।

बीज उपचार है जरूरी
सीधी बुआई में एक एकड़ में करीब 8 किलो बीज का इस्तेमाल होता है। लेकिन बीज बोने से पहले बीज उपचार कर लेना चाहिए। इसके लिए पहले 10% वाला घोल बनाएं। इसमें बीज को डाल दें और फिर एक डंडे से हिला दें। हल्के बीज ऊपर आ जाएंगे और भारी बीज नीचें बैठ जाएंगे। हल्के बीजों का इस्तेमाल ना करें। भारी बीज ही अच्छा प्रोडक्शन देंगे। लेकिन भारी बीजों को अच्छे से दो तीन बार धो लें ताकी नमक का प्रभाव कम हो जाए।

सिंचाई

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सीधी विधि में पहली सिंचाई बीज की बुवाई के 10-15 दिनों बाद करनी चाहिए। इससे पानी गहराई तक जड़ो में जमेगा और सूखे की दिक्कत नहीं आएगी। इसके बाद 5-7 दिन के अंतराल पर पानी दें। सिंचाई को हल्का रखें ताकि खेत में नमी बनी रहे। इसके बाद जब अंकुरण, कल्ले फूटने और बाली बनने लगे तो पानी बराबर खेत में होना चाहिए।

सीधी बुआई के लिए धान की किस्में
जैसा की सीधी बुआई धान बोने की एक अलग किस्म है तो इसमें बुआई के लिए बीज भी अलग किस्म के चाहिए होते हैं। किसान सीधी बुआई के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित पीआर 126, पूसा संस्थान द्वारा विकसित पूसा बासमती 1401, पूसा बासमती 1728 और पूसा बासमती 1886 जैसी किस्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

मिलती है सब्सिडी
धान की सीधी बुआई को सरकार भी सपोर्ट कर रही है। कई राज्यों में इसके लिए सब्सिडी भी दी जा रही है। हरियाणा में ही इस बार 3.02 लाख एकड़ में धान की सीधी बुवाई करने का लक्ष्य रखा है। सरकार इसके लिए किसानों को 4,000 रुपये प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि दे रही है। लेकिन कई राज्यों में ये राशि 1500 रुपये प्रति एकड़ की दर से दी जा रही है।

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