जलवायु परिवर्तन से लगातार प्रभावित हो रही है कृषि, ऐसे करें किसान भाई बचाव!

जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में देखने को मिल रहा है। वैसे तो जलवायु परिवर्तन का असर हर क्षेत्र में देख रहा है लेकिन भारत में इसका एक बड़ा असर कृषि उद्योग में देखने को मिल रहा है क्योंकि भारत की 60% से अधिक आबादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। 1950 के दशक में भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान 51% था और वर्तमान में ये 16% तक कम हो गया है। जबकि कृषि पर निर्भर घरों की संख्या 1951 में 70 मिलियन से बढ़कर 2020 में 120 मिलियन हो गई है। `

भारत में दुनिया के कुल भू-क्षेत्र का मात्र 2.4% हिस्सा है जबकि यहां दुनिया की लगभग 18% जनसंख्या रहती है। ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 के मुताबिक, भारत जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित टॉप 10 देशों में शामिल है। वहीं CSE के मुताबिक, भारत में उपजाऊ जमीन का 30% हिस्सा वर्तमान में मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से बदलता हुआ मौसम और प्राकृतिक संकट भी देखने को मिले हैं। जहां सूखा होता था वहां बारिश देखने को मिली है और बारिश वाली जगहों पर बारिश की कमी हो गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि कैलेंडर बिगड़ने लगा है। किसानों के लिए जलवायु परिवर्तन किसी आफत से कम नहीं है।

जलवायु परिवर्तन से कृषि कैसे हो रही है प्रभावित?

जलवायु परिवर्तन से कृषि कैसे हो रही है प्रभावित?

फसल उत्पादन में कमी: फसलों पर जाहिर है जलवायु परिवर्तन का प्रभाव देखने को मिल रहा है। कहीं कहीं सूखा भी देखने को मिल रहा है तो मिट्टी की उर्वरक छमता भी कम हुई है। वहीं एक रिसर्च के मुताबिक, अगर वातावरण का औसत तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो इससे गेहूं का उत्पादन 17 प्रतिशत तक कम हो सकता है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन को हर साल लगभग 4-9% की दर प्रभावित करता है, इससे जीडीपी में लगभग 1.5% की वार्षिक हानि होती है। 

बढ़ रहा औसतन तापमान: गेंहू, सरसो, जौ और आलू जैसी फसलों को कम तापमान की जरूरत होती है लेकिन औद्योगीकरण की शुरुआत से लेकर अब तक पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। कोशिश रखनी होगी कि ये ना ही बढ़े या बहुत ना के बराबर बढ़े।

बारिश का पैटर्न बदला: बारिश के पैटर्न में ना सिर्फ भारत बल्कि विश्वभर में बदलाव देखने को मिले हैं। कभी अप्रैल के शुरुआत में ही इतनी बारिश हो जा रही है कि किसान फसलों की कटाई भी नहीं कर पाते और वो पानी में डूब जाती हैं। वहीं कुछ राज्यों में जहां मई के महीने में प्री मानसून बारिश होती थी, वो होने का नाम नहीं ले रही है। हमारे देश की कृषि का काफी बड़ा हिस्सा बारिश पर ही निर्भर रहता है। ऐसे में बारिश का पैटर्न बदलने से फसलों पर असर पड़ रहा है। चावल और गन्ने जैसी अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों पर बुरा असर देखने को मिला है। 

कार्बन डाइऑक्साइड में बढ़ोतरी: ग्रीनहाउस गैसों में सबसे खतरनाक कार्बन डाइऑक्साइड है और ये जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है। इससे तापमान ही बढ़ रहा है और हर पौधे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड को झेल नहीं पाते हैं।

कीट-रोगों में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन से कीट-रोगों में वृद्धि में भी देखने को मिली है। रोग बढ़ने के कारण उन पर भी ज्यादा रासायनों का उपयोग करना पड़ता है और ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।

कैसे हो सुधार

कैसे हो सुधार जलवायु परिवर्तन से कृषि कैसे हो रही है प्रभावित?

 जलवायु  परिवर्तन के कारण मिट्टी भी खराब हो रही है। इसकी भरपाई करने के लिए भारत को 2030 तक कम से कम 30 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को फिर से कृषि योग्य बनाने की जरूरत है।

 रासायनिक खेती से ग्रीनहाउस गैसें बढ़ती हैं और इसके बुरे प्रभावों के बारे में सबको पता है। इसलिए जैविक और मिश्रित खेती पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है। 

 बारिश का पैटर्न बदल रहा है इसलिए ज्यादा से ज्यादा पानी का संरक्षण करने की जरूरत है और सिंचाई के लिए नई तकनीकों को ही इस्तेमाल करना चाहिए। जिससे ज्यादा से ज्यादा पानी को बचाया जा सके। 

 जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। यहां तक की पशुओं में क्रॉस ब्रीड पशुओं का भी उत्पादन हो रहा है जो कि किसी जगह के मौसम के अनुसार वहां रहने लायक हो सकें। नए नए बीज बदलते मौसम की मार को झेलने में सक्षम बताए जा रहे हैं।

 कृषि में नई नई तकनीकें देखने को मिल रही हैं। आईओटी, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचैन, प्रिसिजन कृषि, ड्रोन, स्मार्ट ट्रैक्टर/एग्री-बॉट, स्मार्ट वेयरहाउसिंग और ट्रांसपोर्ट ऑप्टिमाइजेशन जैसी तकनीकों को अपनाने की काफी जरूरत है। जिससे जलवायु परिवर्तन का कृषि में कम प्रभाव पड़े।

ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में नीतिगत फैसले लेने की जरूरत है। फिलहाल जो कार्बन को कम करने के लिए नीतियां बनाई गई हैं, उनसे तापमान में बहुत ज्यादा फर्क नहीं आया है। हालांकि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर जोर बढ़ा है। 

जलवायु परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है। जिसे हलके में बिल्कुल नहीं लिया जाना चाहिए। लेकिन इसके प्रभावों को उन किसानों तक भी पहुंचाना होगा जो छोटे और सीमांत किसान हैं, जो रोज की रोजी रोटी कमाने से ही नहीं उभर पा रहे हैं और ऐसे किसानों की संख्या काफी ज्यादा है। आजकल के युवा किसान तो फिर भी कृषि के अलग पहलुओं को समझ रहे हैं और नई तकनीकों का इस्तेमाल करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं और तो और इनमें से कुछ बाकी लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा कर रहे हैं।

भारत में खेतों के जोत का साइज कम होता जा रहा है। इसमें अगर पारंपरिक खेती करते रहे तो इससे ना उनकी आय बढ़ेगी और ना ही वो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बच पाएंगे। इसलिए जरूरत है कि हर किसी को इस समस्या से अवगत कराके इसका समाधान भी बताया जाए।

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