परिचय
भारत में मक्का की खेती (Zea Mays) की खेती एक प्रमुख खाद्यान्न उत्पादन गतिविधि है, जो हर वर्ष लाखों किसानों के लिए आय का महत्वपूर्ण साधन बनती है। मक्का एक गर्मी की फसल है, जिसे विशेष रूप से खरीफ और रबी के मौसम में उगाया जाता है। यह एक बहुउपयोगी फसल है जो न केवल मनुष्यों के लिए खाद्य सामग्री प्रदान करती है, बल्कि पशुओं के लिए चारे और उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में भी उपयोग की जाती है।
इस लेख में, हम मक्का की खेती से जुड़े विभिन्न पहलुओं, सही तकनीकों, और उत्पादन बढ़ाने के उपायों की विस्तार से चर्चा करेंगे।
मक्का की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
मक्का की अच्छी पैदावार के लिए उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह फसल 18°C से 27°C तक के तापमान में अच्छी तरह से बढ़ती है। हालांकि, मक्का को अधिक गर्मी और ठंड सहने की क्षमता होती है, परंतु इसे अंकुरण और फूलने के समय अत्यधिक बारिश या सूखा प्रभावित कर सकता है।
मिट्टी की बात करें तो, मक्का की खेती के लिए जल निकासी युक्त दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। हालांकि, यह बलुई दोमट और चिकनी मिट्टी में भी उगाई जा सकती है, लेकिन जल निकासी की अच्छी व्यवस्था आवश्यक है।
मक्का की उन्नत किस्में
आज के समय में बाजार में मक्का की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जिनसे किसान अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। कुछ प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं:
जी-5418: यह किस्म अधिक उपजाऊ और कम समय में तैयार होती है।
विमल-50: इस किस्म की खेती मुख्य रूप से खरीफ के मौसम में की जाती है।
प्रकाश-53: यह किस्म कीट और रोग प्रतिरोधक होती है।
उन्नत किस्मों का चयन फसल उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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मक्का की खेती की विधि
बुवाई का समय: मक्का की बुवाई का समय मुख्य रूप से क्षेत्र और मौसम पर निर्भर करता है। खरीफ की फसल जून से जुलाई के बीच बोई जाती है, जबकि रबी की फसल अक्टूबर से नवंबर में।
बुवाई की गहराई और दूरी: मक्का के बीजों को 4 से 5 सेमी गहराई पर बोया जाता है। पौधों के बीच की दूरी 20-25 सेमी और कतारों के बीच 60-70 सेमी होनी चाहिए।
बीज उपचार: बीजों को फफूंदनाशी और कीटनाशक से उपचारित करना चाहिए ताकि फसल रोगों और कीटों से बची रहे।
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खाद और उर्वरक
मक्का की बेहतर पैदावार के लिए सही मात्रा में उर्वरकों का उपयोग आवश्यक है। बुवाई के समय जैविक खाद जैसे कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश का उचित अनुपात में प्रयोग फसल वृद्धि में सहायक होता है।
नाइट्रोजन: 120-150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से।
फॉस्फोरस: 60-70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
पोटाश: 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
सिंचाई और जल प्रबंधन
मक्का की फसल को अच्छी उपज के लिए समय पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुवाई के तुरंत बाद और फिर 3 से 4 बार फसल की सिंचाई आवश्यक होती है। हालांकि, अत्यधिक पानी से बचना चाहिए, क्योंकि इससे जड़ें सड़ने का खतरा रहता है।
पहली सिंचाई: बुवाई के तुरंत बाद।
दूसरी सिंचाई: अंकुरण के 20-25 दिन बाद।
तीसरी सिंचाई: फूल आने के समय।
अंतिम सिंचाई: दानों के पकने के समय।
कीट और रोग प्रबंधन
मक्का की फसल में कई कीट और रोग लग सकते हैं। कुछ सामान्य कीट और रोग जैसे तना छेदक, मक्का का जड़ गलन, और ब्लाइट बीमारी फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनसे बचने के लिए सही समय पर कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का छिड़काव करना जरूरी है।
तना छेदक: यह कीट मक्का की पत्तियों और तनों को नुकसान पहुंचाता है। इसके लिए क्लोरोपाइरीफॉस जैसे कीटनाशक का प्रयोग करें।
जड़ गलन: जड़ गलन के लिए ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक फफूंदनाशक का प्रयोग किया जा सकता है।
फसल की कटाई और भंडारण
मक्का की फसल 90 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पौधे सूख जाएं और दाने सख्त हो जाएं, तो फसल की कटाई की जाती है। मक्का की कटाई मशीन से भी की जा सकती है।
कटाई के बाद मक्का के दानों को सूखे और हवादार स्थान पर भंडारित किया जाना चाहिए ताकि नमी और कीटों से बचा जा सके। दानों को सुरक्षित रखने के लिए कीटनाशक का छिड़काव भी किया जा सकता है।
मक्का की खेती के लाभ
अधिक उत्पादन: मक्का की फसल से किसान प्रति हेक्टेयर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
कम लागत: मक्का की खेती की लागत अन्य फसलों की तुलना में कम होती है।
व्यापक उपयोग: मक्का का उपयोग न केवल भोजन के रूप में होता है, बल्कि इसका प्रयोग औद्योगिक कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है।
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निष्कर्ष
मक्का की खेती भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि इसे सही तकनीकों और उन्नत किस्मों के साथ किया जाए, तो इससे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। मक्का की उन्नत खेती के तरीके अपनाकर आप भी अपने उत्पादन को बढ़ा सकते हैं।