खेती में जैविक खाद का है बड़ा महत्व, फसल और मिट्टी दोनों रहते है स्वास्थ्य

देशभर में किसान अलग अलग तरीकों से कृषि कर रहे हैं। लेकिन इनमें काफी ज्यादा रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिए डाला जाता है लेकिन इससे स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। मिट्टी भी खराब होती है और जल प्रदूषण भी बढ़ता है। इसलिए धीरे-धीरे किसान जैविक खेती की तरफ लौट रहे हैं। ये हमेशा से ही कृषि के लिए बेहतरीन और कारगर तरीका रहा है। हालांकि जागरुकता की कमी के कारण किसान सही से जैविक खेती का उपयोग नहीं कर पाते हैं। जबकि घर पर ही वो जैविक खेती के लिए जैविक खाद (ऑर्गनिक खाद) तैयार कर सकते हैं। ये उन्हें सस्ता भी पड़ता है। कई तरह की ऑर्गनिक खादों को जैविक खेती के लिए तैयार किया जाता है। ये स्वदेशी और सस्ती तकनीक है। आइए आपको जैविक खाद के फायदे और इनके बारे में बताते हैं। जिनका इस्तेमाल कर आप भी अपनी फसलों का उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

जैविक खाद डालने के फायदे:

जैविक खाद डालने के फायदे:

* इससे खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में उत्पादन होता है।

* कृषि तकनीकों से होने वाले सभी प्रदूषणों से बचाव होता है।

* मृदा उर्वरता काफी लंबे समय तक के लिए बढ़ जाती है। 

* मिट्टी का तापमान कम रहता है और नमी बनी रहती है।

* कूड़े कचरें की समस्या दूर होती है क्योंकि इन्हीं से खाद बन जाती है।

* मिट्टी स्वस्थ होती है और इससे वाष्पीकरण की समस्या का हल होता है।

* मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है, जिससे कम सिंचाई की जरूरत होती है।

* ऑर्गनिक कार्बन की मात्रा बढ़ती है और मिट्टी का पीएच मान लेवल संतुलित रहता है।

* पशुओं को पौष्टिक चारा मिलता है और उनका दूध उत्पादन बढ़ता है।

* जैविक खान वाली फसलें अगर आप बाजार में बेकते हैं तो इसके बाजार में दाम बढ़िया मिलते हैं।

जैविक खाद के प्रकार

जैविक खाद के प्रकार

वर्मीकम्पोस्ट या केंचुआ खाद: इस खाद को किसान अपने आसपास बना सकते हैं। इसके लिए उन्हें लगभग 1 मी. चौड़ा , 0.5 मी. गहरा और 10 मी. लंबा टैंक तैयार करना होगा और ये एक शेड के नीचे होना चाहिए। वर्मीकंपोस्ट को बनाने के लिए कृषि अवशेष, जल खुंबी, केले और बबूल की पत्तियां, हरी सुखी पत्तियां, गले-सड़े फल व सब्जियां, घरेलू कचरा और पशुओं के गोबर का इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन याद रखें ताजा गोबर ना डालें। एक टैंक में 15 दिन सड़ा हुआ गोबर का घोल डालने के बाद इसे टैंक में डालें और बाकी चीजें डालना शुरू करें। फिर केचुंए इसमें डालें। ये खाद करीब 60-70 दिनों में बनकर तैयार हो जाती है। 

गोबर की खाद: गोबर खाद को अलग अलग तरह से बनाया जा सकता है। 9.1 मी. लंबा, 1.8 मी. चौड़ा और 0.8 मी गड्ढा खोदें। इसे गोबर से भर दें और इसे कवर  कर दें। ध्यान रहे कि कहीं से अंदर हवा ना जाए। गड्ढे के ऊपरी भाग पर गुंबदनुमा आकार बना दिया जाता है और इसे लेप दिया जाता है ताकी बरसात का पानी यहां ना टिके। ये खाद करीब 2 से 3 महीने में बनकर तैयार हो जाती है। इसमें नाइट्रोजन की अच्छी मात्रा पाई जाती है। 

कंपोस्ट: इस खाद को बनाने के लिए ऐसी जगह चुनें जहां धूप और हवा ना आए। आपको जितने पदार्थ की खाद बनानी है। उसके अनुसार गड्ढा खोदें। इसके बाद उसमें पुराना सूखा गोबर डाल दें। ऊपर से नीम की पत्तियों की परत बनाएं। इसके बाद गीले और सूखे अपशिष्टों  की 4-5 लेयर बनाएं। इसमें सब्जियों का कचरा, पत्तियां, घास, हरी टहनियां इत्यादि डाल सकते हैं। इसके बाद मिट्टी की एक 15 सेमी की परत डालकर पानी से गीला कर दें। इसे करीब 3 महीने के लिए छोड़ दें। इसके बाद ये इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाएगी। 

हरी खाद: इस खाद को फसलों से ही बनाया जाता है। गेहूं की फसल कटने के बाद खेत में ढ़ेंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार, बरसीम वगैरह बो दें। इसमें एक दो बार सिंचाई कर दें। करीब 40-45 दिन बाद इस फसल को खेत में ही जोत दें। ये आपकी हरी खाद हो गई। इसके बाद अगर आप इस खेत में धान की खेती करते हैं, तो आपको उसके अच्छे नतीजे मिलेंगे। 

मुर्गी की बीट से खाद: मुर्गी की बीट से बनी खाद से खेतों में मिट्टी को अच्छे खासे पोषक तत्व मिलते हैं। पॉल्ट्री फार्मिंग में लोग अब इसकी बराबर खाद बना रहे हैं और बेच रहे हैं। हालांकि इस खाद को सीधे खेत में ना डालें। क्योंकि ताजा खाद पौधे जला सकती है। 

आप किसी भी जैविक खाद का उपयोग क्यों ना करें लेकिन सबसे जरूरी होती है मिट्टी की जांच। इसलिए कोई भी खाद डालने से पहले मिट्टी की जांच जरूर करवा लें। ताकि आपको पता रहे कि कौन सी खाद कितनी मात्रा में डालनी है। क्योंकि अत्यधिक मात्रा में या ताजा खाद डालने से मिट्टी में नाइट्रोजन ज्यादा हो सकता है और इससे पौधों को नुकसान पहुंचेगा। 

तकनीक के साथ करें जैविक खेती

हम भले ही जैविक खेती कर रहे हैं लेकिन इसे नई तकनीकों के साथ करेंगे तो नतीजें काफी अच्छे मिलेंगे। क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से खेती पर प्रभाव पड़ा है। हम भले ही पुराने तरीके अपनाएं लेकिन वो इस बदलते हुए वातावरण में ज्यादा फायदा नहीं दे पाएंगे। पानी की कमी होती जा रही है। भले ही जैविक खाद से सिंचाई अंतराल में कमी आती है लेकिन इसी में अगर स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई को शामिल कर लें तो पानी की बहुत बचत होगी क्योंकि पानी की कमी बहुत बड़ा मुद्दा बन रहा है। गांवों में तमाम ट्यूबवेल सूख गए हैं।

नई तकनीक से विकसित किए जा रहे बीजों के साथ जैविक खेती करेंगे तो किसानों की फसल का उत्पादन काफी बढ़ जाएगा। इसलिए किसान अगर अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं तो ऑर्गनिक खाद डालकर खेती करें। उन्हें फायदा होना तय है। इससे आने वाली पीढ़ी में भी अच्छा संदेश जाएगा और सस्टेनेबल खेती होती रहेगी।

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