मृदा स्वास्थ्य को कैसे बनाए रखें, इन कारगर तरीकों से मिट्टी होगी उपजाऊ

भारत की जनसंख्या की बात करें तो इसमें सबसे ज्यादा लोग कृषि उद्योग से जुड़े हैं। खेती की नई नई तकनीकों और विकसित बीजों की बात भी इस उद्योग में होती रहती है। लेकिन एक चीज और भी सबसे जरूरी है जिसपर ये कृषि उद्योग फलता फूलता है और वो है मिट्टी। मिट्टी के स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना जरूरी है। अगर मिट्टी अच्छी नहीं है तो फसल का अच्छा होना तो भूल ही जाइए। उल्टा आपकी फसल बर्बाद ही होगी। फसलों के साथ साथ मृदा स्वास्थ्य की बात भी होती रहनी चाहिए और ये होती भी है। तभी हर राज्य में सरकारी नीतियों में इस बात पर जोर रहता है कि किसान खेती से पहले मृदा परीक्षण जरूर करवाएं। यहां तक कि सरकार मिट्टी के जांच केंद्र खोलने पर सब्सिडी भी देती है। 

खराब मिट्टी से क्या होगा?

खराब मिट्टी से क्या होगा?

अगर आपको उच्च गुणवत्ता वाली फसलें पैदा करनी हैं तो स्वस्थ मिट्टी आवश्यक है। अगर मिट्टी का ख्याल नहीं रखेंगे तो ये मौसम के प्रति संवेदनशील हो सकती है। यानी अगर मौसम गर्म हुआ तो इसका मिट्टी पर असर पड़ेगा और मिट्टी अपने अंदर जल सरंक्षण की क्षमता खो देगी। जैसे-जैसे मृदा स्वास्थ्य बिगड़ता है, मिट्टी के मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण की संभावना बढ़ जाती हैं। जाहिर है इससे खेती बाड़ी में नुकसान होगा और किसान काफी लागत लगाने के बाद भी अच्छी फसल प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

मिट्टी के खराब होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे कि गहन कृषि, वानिकी और जलवायु परिवर्तन। और भी कई कारण हैं जिससे ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर में मिट्टी का स्वास्थ्य खतरे में है। हाल की एक स्टडी के मुताबिक, 61% भूमि यूरोपीय संघ में मृदा निम्नीकरण से प्रभावित हैं। हम तकनीक का इस्तेमाल तो कर रहे हैं लेकिन इसका सही से इस्तेमाल ना करने पर ये मृदा स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। भारी कृषि मशीनरी और अत्यधिक जुताई से मिट्टी प्रभावित होती है। रासायनिक कीटनाशक, उर्वरक और अन्य औद्योगिक रसायन मिट्टी के सूक्ष्मजीवों और पोषक तत्वों को बर्बाद कर रहे हैं। ये मिट्टी के जीवों की मात्रा और विविधता को कम कर रहे हैं। जाहिर है इससे मिट्टी का काफी नुकसान पहुंच रहा है।

कैसे बनती है स्वस्थ मिट्टी?

कैसे बनती है स्वस्थ मिट्टी?

औसतन, कृषि लायक जमीन में कार्बनिक पदार्थ बहुत कम होता है। ये 1% से 2% तक होता है लेकिन एक आदर्श स्तर करीब 5% होना ही चाहिए। क्योंकि इससे मिट्टी की संरचना, उर्वरता, जल प्रतिधारण और पोषक तत्व बेहतर बनते हैं। स्वस्थ मिट्टी निर्धारित करने के लिए किसान और वैज्ञानिक कई चीजें देखते हैं। जैसे कि कितने सूक्ष्मजीव मिट्टी में मौजूद हैं। मिट्टी में कितने पोषक तत्व, नाइट्रोजन, पोटाश और फोसफोरस वगैरह हैं। वहीं सूखे के दौरान मिट्टी कितने अच्छे से पानी बरकरार रख पाती है?

मिट्टी के स्वास्थ्य को कैसे बचाएं?

मिट्टी जांच: सबसे ज्यादा जरूरी है कि किसान मिट्टी की जांच जरूर कराएं। इससे आपको पता चलेगा कि मिट्टी में किस चीज की कमी है और कौन सी चीज ज्यादा है। अगर आपको मिट्टी की परिस्थिति पता रहेगी तभी आप उसका उपचार सही तरीके से कर पाएंगे।

कम रासायनिक खाद: रासायनिक खादों को बहुत से लोग और शोधकर्ता जहर तक कहने लगे हैं। इसका जितना कम से कम उपयोग हो सके करें। रासायनिक उर्वरक उपयोग से ना सिर्फ मिट्टी बल्कि इंसानों के स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ता है। इससे कई तरह के बदलाव मानव शरीर में देखने को मिले हैं। बच्चों के विकास और हार्मोनल चेंज भी देखे गए हैं।

जैविक खाद: मिट्टी के लिए जैविक खाद वरदान साबित होती है। जैविक खाद जिस भी प्रकार की हो, आप उसे खेतों में इस्तेमाल कर सकते हैं। आप हरी खाद, केंचुए वाली खाद, किचन वेस्ट, मानव मल, गोबर इत्यादि से बनी किसी भी तरह की जैविक खाद का उपयोग करें। उसके दुष्प्रभाव आपको ना के बराबर ही देखने को मिलेंगे। लेकिन सही अनुपात में ही इस खाद का इस्तेमाल करें।

ये तत्व हों मौजूद: फसलों की अच्छी पैदावार के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और कार्बन पदार्थ के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिट्टी में मौजूद होने चाहिए। मिट्टी जांच के बाद आपको इनकी कमी के बारे में पता चल जाएगा। जिसकी भरपाई आप कई तरीकों से कर सकते हैं। घास की कतरन, पत्तियां और सब्ज़ियों का कचरा जैसी खाद वाली सामग्री मिट्टी के लिए पोषक तत्वों के बेहतरीन स्रोत होते हैं।

कवर फसलें: खेतों को उपजाऊ बनाए रखने के लिए कवर फसलों का उपयोग कर सकते हैं। इस तरीके को पूरी तरह से सुरक्षित माना जाता है। कवर फसलों में आप फलियां, तिपतिया घास और अनाज राई शामिल कर सकते हैं। फलियों से मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़ने में मदद मिलती है। वहीं अनाज-राई  कार्बन का भी एक अच्छा स्रोत है। एक और उदाहरण के तौ पर धान की बुआई से पहले ढैचा लगाने से मिट्टी धान के लिए बढ़िया उपजाऊ हो जाती है।

बिना जुताई वाली खेती: आप ये तरीका भी अपना सकते हैं। ये जैविक खेती का एक रूप है इसमें मिट्टी की जुताई नहीं की जाती है, इससे मिट्टी का कटाव कम करने में मदद मिलती है। मिट्टी स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आप इस पर खाद, गोबर या कवर फसलें डाल सकते हैं। सर्दियों में मिट्टी को ठंड से बचाने और नमी बनाए रखने के लिए गीली घास से ढका जा सकता है।

फसल चक्र अपनाएं: एक ही खेत में बदल बदल कर फसलें लगाने से लाभ होता है। किसी फसल का रोग अगली बार जमीन को नहीं लगता है तो किसी फसल से मिट्टी को वो पोषक तत्व मिल जाते हैं जो उन्हें पिछली फसल से नहीं मिले होते हैं। इससे एक निश्चित फसल प्रकार से जुड़ी बीमारियों और कीटों के जोखिम से भी बचा जा सकता है।

सही सिंचाई: वैसे तो कहा जाता है कि खेतों में बराबर सिंचाई करते रहें। लेकिन कैसे सिंचाई करें ये भी ध्यान रखना चाहिए। आजकल तो ड्रिप और स्प्रिंकलर के जरिए भी सिंचाई हो रही है। लेकिन अगर आप नदी किनारे खेती कर रहे हैं तो आपको बाढ़ सिंचाई का इस्मेमाल करना चाहिए। ये ध्यान रखाना चाहिए कि मिट्टी ठीक से नम हो लेकिन जलभराव ना हो। मिट्टी की सेहत के लिए ये प्वाइंट भी जरूरी है।

पुरानी खाद अपनाएं: खाद डालते वक्त भी ये ध्यान रहना चाहिए कि खाद जाता ना हो और अच्छी तरह से घुली हुई हो क्योंकि ताजा खाद पौधों को जला सकती है। खाद इस्तेमाल करने से पहले ये देख लें कि खाद कम से कम छह महीने तक पुराना होना चाहिए।

तो अगर आपने अभी तक अपनी मिट्टी की तरफ ध्यान नहीं दिया है या कम ध्यान देते हैं तो अब ध्यान देना शुरू कीजिए, क्योंकि आपके कम फसल उत्पादन का कारण खराब मिट्टी हो सकती है। इसलिए मृदा स्वास्थ्य को जरूर बनाए रखें।

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