ऊंट पालन से इस तरह कर सकते हैं हर महीने लाखों की कमाई

राजा-महाराजाओं के वक्त में ऊंटों का इस्तेमाल सिर्फ युद्ध के लिए किया जाता था। फिर धीरे-धीरे इनका उपयोग बोझा ढोने, कृषि कार्यों या फिर दूध उत्पादन के लिए भी किया जाने लगा। फिर एक समय ऐसा भी आया कि पशुपालन के व्यवसाय में गाय, भैंस, बकरी जैसे जानवरों को ज्यादा श्रेष्ठता दी जाने लगी। जिससे ऊंटों की संख्या में कमी होने लगी।

लेकिन, आज एक बार फिर से किसानों के बीच ऊंट पालन को लेकर लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ रही है। यहां तक कि बहुत से राज्यों में तो किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए ऊंट पालन करने पर आर्थिक तौर पर मदद भी दी जा रही है। इसकी वजह है ऊंट पालन से होने वाला मुनाफा। ऊंटों के पालन से किसान अब आसानी से लाखों में कमाई कर रहे हैं।

इस आर्टिकल में, हम आपको ऐसे ही किसान के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आज ऊंट पालन से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं।

जैसलमेर के सवंता गांव के रहने वाले सुमेर सिंह पिछले कई पीढ़ी से ऊंट पालन करते आ रहे हैं। आज के दौर में भी सुमेर सिंह के पास लगभग 50 से 60 ऊंट हैं। यह इनका पुश्तैनी काम माना जाता है और ऊंट पालन से ये अच्छी खासी कमाई भी कर रहे हैं। इसके साथ ही सुमेर सिंह ऊंटनी के दूध से तरह-तरह के प्रोडक्ट्स बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।

ऊंट से कमाई करने के हैं कई तरीके

सुमेर सिंह का कहना है कि यह उनका पुश्तैनी काम है और आज भी वह अगर कहीं जाते हैं तो ऊंट से ही सवारी करते हैं। वह बताते हैं कि ऊंट से कमाई करने के कई तरीके हैं जैसे कि जैसलमेर में दुर्ग और किले हैं, टूरिस्ट घूमने आते हैं और ऊंट की सवारी करते हैं, जिससे उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है। सुमेर सिंह आगे बताते हैं कि “मेरा और ऊंट का बहुत अच्छा प्यार है…अगर मेरे पशु को कुछ हो जाता है, तो मुझे चिंता होती है, खुशी नहीं मिलती…इसलिए हम ऊंट पालन करते हैं।”

ऊंटनी के दूध से बना सकते हैं तमाम प्रोडक्ट्स

सुमेर सिंह ने शहर के अंदर एक डेरी खोली है, जहां पर वह ऊंटनी का दूध बेचते हैं। दूध बेचने के साथ ही वह ऊंटनी के दूध से तमाम प्रोडक्ट्स भी बनाते हैं, जैसे कि छाछ, दही, फ्लेवर्ड ऊंट दूध, राबड़ी, घी, लस्सी, चीज़, गुलाब जामुन, बर्फी, चॉकलेट, चॉकलेट बर्फी, चीज, पेड़ा, पनीर, रसगुल्ला, क्रीम, दूध का पाउडर, कुल्फी, कॉफी, आइसक्रीम, इत्यादि। आज बड़ी दूर-दूर से लोग आकर इसका लुफ्त उठा रहे हैं।

गाय-भैंस से अधिक महंगा है ऊंटनी का दूध

देश में ऊंट की संख्या बेशक गाय और भैंस जैसे दुधारू पशुओं से कम है, हालांकि दुनिया भर में इसके दूध की मांग बहुत अधिक है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऊंटनी का एक लीटर दूध ही 2000 से 2,500 रुपये में बेचा जाता है। ऊंटनी का दूध इसलिए भी महंगा है, क्योंकि इसकी देखभाल और दाना-पानी में बहुत खर्च आता है। जहां गाय और भैंस एक दिन में लगभग 50 लीटर तक दूध देती है, तो ऊंटनी एक दिन में सिर्फ 7-8 लीटर ही दूध देती है। ऊंटनी के दूध का उत्पादन काफी कम है और मांग बहुत अधिक है। इसलिए इसका दूध भी इतना मंहगा है।

सरकार भी कर रही है वित्तीय सहायता

आपको बता दें कि किसानों में ऊंट पालन को लेकर जागरुकता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने कई सारी योजनाएं भी लॉन्च की हैं। इसके साथ ही केंद्र सरकार ऊंट पालन के लिए अनुदान भी प्रदान कर रही है। वहीं, ऊंटनी के दूध का पूरा कलेक्शन सरकारी डेयरी आरसीडीएफ (RCDF) कर रही है। आरसीडीएफ (RCDF) के कारण किसानों को ऊंटनी का दूध बेचने के लिए भी मशक्कत नहीं करनी पड़ती। इसके साथ ही ऊंटों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर सरकार ने उन्हें दूसरे राज्यों में बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही राज्य सरकार भी ऊंटों के पालन पर किसानों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं।

ऊंटों की प्रजातियां

भारत में ऊंटों की चार प्रजातियां पायी जाती हैं: जैसलमेरी, सिंधी, बीकानेरी और कच्छ; ये प्रजातियाँ राजस्थान, गुजरात एवं कच्छ में पाई जाती हैं।

  • बीकानेरी ऊंट

बीकानेरी नस्ल भारतीय ऊंटों की एक प्रमुख नस्ल है और इस नस्ल का नाम ‘बीकानेर’ शहर से लिया गया है। ‘बीकानेर’ को राव बीका ने 15 वीं शताब्दी में स्थापित किया था। बीकानेरी ऊंट आकर्षक, सौष्ठव एवं उत्तम बनावट के होते हैं। इनकी ऊँचाई अच्छी, बनावट मजबूत और यह बहुत सक्रिय होते हैं। ये सामान्य रूप से गहरे भूरे रंग अथवा काले रंग के होते हैं। जबकि कुछ जानवरों में हल्का लाल रंग भी होता है। बीकानेरी उंटों का शरीर सुडोल और सिर थोड़ा गुंबद के आकार का होता है। इनके सिर पर आगे की ओर गहरा गढ्ढा होना इनकी एक विशिष्ट पहचान है।

  • जैसलमेरी ऊंट

जैसलमेरी ऊंट स्वभाव से फुर्तीले और पूर्ण ऊंचाई व पतली टांगों वाले होते हैं। इनका सिर और मुंह छोटा तथा थूथन संकरी होती है। इन ऊंटों की गर्दन पतली व लम्बी होती हैं एवं सिर छोटा तथा आंखे चमकदार होती हैं। इनका सिर गुंबद के आकार का नहीं होता है तथा अग्र सिर पर किसी प्रकार का गढ्ढा नहीं होता। इनकी भौंहों, पलकों एवं कानों पर घने काले बाल नहीं पाए जाते। ये ऊंट सामान्य रूप से हल्के भूरे रंग के होते हैं। जैसलमेरी ऊंटों के शरीर पर पतली त्वचा एवं छोटे बाल होते हैं।

  • कच्छी नस्ल

कच्छी नस्ल के ऊंट सामान्य रूप से मटमैले रंग के होते हैं। इनकी भौंहे और कानों पर बाल नहीं होते। ये शरीर के बाल रूक्ष होते हैं। इनका मध्यम आकार का सिर तथा अग्र सिर पर गढ्ढा नहीं होता है। कच्छी नस्ल के ऊंट का शरीर मध्यम आकार का होता है। इस नस्ल के ऊंट भारी एवं प्रदर्शन में ढीले होते हैं। ये बलवान एवं कुछ छोटे होते हैं। इनके पुट्ठे मजबूत, टांगें भारी, पावों के तलवे कठोर एवं मोटे होते हैं। ये कच्छ के नम वातावरण एवं दलदली भूमि को अच्छी तरह से अनुकूलित किए हुए हैं। कुछ जानवरों में दांत दूरी पर स्थित होने के कारण नीचे के होंठ लटके होते हैं।

  • सिंधी नस्ल

सिंधी नस्ल के ऊंट सभी कामों के लिए उचित है। ज्यादातर सिंधी नस्ल के ऊंट बोझा ढोने एवं कृषि कार्य के लिए प्रयोग किए जाते हैं। रेगिस्तान में सेना व पुलिस के जवान भी गश्त के लिए इस नस्ल के ऊंटो को काम में लेते हैं। इस नस्ल के ऊंट सभी कामों के लिए उपयुक्त है। इस नस्ल के ऊंट की लंबाई मध्यम आकार की होती है। इनका हल्का भूरा रंग होता है। आंखें छोटी-छोटी होती है। हड्डियां मोटी व मजबूत होती हैं।

राजस्थान के जैसलमेर के सुमेर सिंह की कहानी उन्हीं की जुबानी देखें:-

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