क्या है फसल विविधिकरण, जिसे अपनाकर किसान कृषि को बना सकते हैं फायदे का सौदा?

देशभर में खेती किसानी को लेकर लोगों में काफी जागरुकता आई है। तमाम युवा भी कृषि उद्योग में तकनीक के साथ जुड़ रहे हैं जिससे उनके लिए ये मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। इन्ही में से एक तकनीक फसल विविधीकरण की भी है। दरअसल फसल विविधीकरण एक खेत में अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाने की प्रक्रिया है। इससे किसानों को काफी लाभ होता है। उन्हें ना सिर्फ अलग अलग फसलों की अच्छी कीमत मिलती है बल्कि खेत की गुणवत्ता भी बढ़ती है और मृदा स्वास्थ्य बना रहता है।

क्या हैं फायदे?
वर्तमान में 70 से 80 % किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम खेती योग्य भूमि है। अगर वो एक ही तरह की फसल लगाते हैं तो हो सकता है कि उन्हें ऊंचे दाम ना मिले। इसलिए मौजूदा फसल के पैटर्न को उच्च दाम वाली फसलों जैसे कि मक्का, दाल, आदि के साथ विविधीकरण करना चाहिए। मान लीजिए, अगर एक सीज़न में सब्जियों का ठीक प्रदर्शन नहीं होता है, तो किसान को दालों से आजीविका चलाने लायक पैसे मिल जाएंगे। जब दोनों फसलों के अच्छे दाम मिलेंगे तो जाहिर है फिर तो अच्छी कमाई होना तय है।

अगर किसान फसल विविधिकरण अपनाते हैं तो इससे उन्हें कृषि उत्पादों की कीमत में उतार-चढ़ाव से कम खतरा रहता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित रहती है। अगर रोग, कीट, सूखा, बाढ़, गरमी, और पाला जैसी पारिस्थितियों से कारण फसल उत्पादन कम होता है तो इस परिस्थिति में मिश्रित फसल के माध्यम से फसल विविधीकरण उपयोगी मानी जाती है। यानी खराब मौसम में पूरी फसल बर्बाद होने के जोखिम से बचा जा सकता है।

फसल विविधिकरण के तहत अगर आप बहु-फसल और अंतर-फसल लगाते हैं तो किसानों को कीटनाशकों, रासायनिक उर्वरकों और अत्यधिक पानी के उपयोग में कमी देखने को मिलेगी। इसमें लागत भी कम हो जाती है।

सरकारें भी किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए ध्यान दे रही है। उदाहरण के तौर पर हरियाणा सरकार पानी बचाने के लिए ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ नाम की योजना चला रही है। इसके जरिए सरकार ज्यादा पानी की खपत वाले धान की जगह ऐसी फसलों को प्रोत्साहित कर रही है जिनके लिए कम पानी की जरूरत हो। सरकार खरीफ सीज़न में वैकल्पिक फसलों की बुवाई करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि के तौर प्रति एकड़ 7,000 रुपये भी देती है।

बिहार सरकार ने औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती को शामिल कर आय बढ़ाने का तरीका निकाला है। इसके लिए सरकार की राज्य में किसानों को 50 फीसदी तक सब्सिडी देने की योजना है। इसमें किसान पाम रोजा, लेमन ग्रास, तुलसी, खस, सतावरी की खेती कर सकते हैं।

औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के लिए न्यूनतम 0.1 हेक्टेयर और अधिकतम 4 हेक्टेयर वाले किसान इस योजना का फायदा उठा सकते हैं। उन्हें 75,000 रुपये से अधिक की सब्सिडी दी जा सकती है। इसके लिए वो horticulture.bihar.gov.in पर आवेदन कर सकते हैं।

आजकल लोगों में भी तमाम तरह के खाने को लेकर जागरुकता बढ़ी है। किसान अलग अलग तरह की फसलें उगाएंगे तो उन्हें अलग अलग तरह की चीजें खाने को मिलेंगी जो पौष्टिक और स्वादिष्ट दोनों होगा। बाजरा, स्वदेशी अनाज, फल और सब्जियों का अच्छा मिश्रण उपभोक्ता तक पहुंचेगा।

क्या हैं दिक्कतें?
अभी तक किसान बहुत बड़ी संख्या में पारंपरिक खेती कर रहे हैं। देश में खाद्य उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ कुछ फसलों से ही आता है, जो फसल विविधता को कम करता है। जाहिर है इससे कृषि उद्योग प्रभावित होता है।

चूंकि छोटे और मझले किसानों की संख्या ज्यादा है तो उन पर वित्तीय बोझ बना रहता है। वो फसल विविधिकरण की तरफ बढ़ ही नहीं पाते हैं। इन किसानों के पास बीज, यंत्र-उपकरण और जागरुकता की कमी होती है। हालांकि कई राज्यों में सरकार बीजों पर समय समय पर सब्सिडी देती है लेकिन जागरुकता के अभाव में वो इन सब चीजों का फायदा नहीं उठा पाते हैं।

फसल विविधिकरण सुनने में तो आसान लगता है। सीधे शब्दों में कहें तो जो किसान एक फसल लंबे चौड़े क्षेत्र में लगा रहा है। उसे उस फसल को बदलकर दूसरी फसल लगाने को कहें तो ये जटिल काम है। क्योंकि दूसरी फसल लगाने के पीछे कई कारण होंगे जिसे हर एक किसान आसानी से नहीं समझ पाता है।

ये उसी तरीके से है जिस तरीके से कोई व्यापारी अगर कोई कार्य कर रहा है। उसमें उसको मुनाफा है, लेकिन हम उसे ये कहें कि नहीं वह जो कर रहा है वह पर्यावरण एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए ठीक नहीं है। और वो उस काम छोड़कर दूसरा काम करें तो वो तुरंत आपसे लड़ने लगेगा। वो कहेगा कि मुझे मेरा परिवार नहीं चलाना, तुम कौन हो ये तय करने वाले कि मुझे क्या बेचना है या क्या नहीं बेचना है।

यही स्थिति किसान की है वो अपनी परिस्थितियों को देखते हुए फसल उगाने का निर्णय करता है। उसे उस चीज को छोड़कर दूसरी चीज उगाने के लिए मनाना एक बहुत ही मुश्किल कार्य है।

फसल विविधिकरण में अकसर ही बाजार की भी दिक्कतें आती हैं क्योंकि बाजार में भी सिर्फ एक ही प्रकार की फसल लेने का चलन ज्यादा है। किसान अपनी अलग अलग फसलों को अलग अलग जगहों पर जाकर बेचने से कतराएगा। किसान को फसल उगाने से ज्यादा एक मजबूत बाजार तंत्र भी चाहिए। जहां उसे अच्छी कीमतें भी मिल सकें।

हालांकि वर्तमान समय में फसल विविधिकरण की आवश्यकता तो है। ताकि बाजार के उतार-चढ़ाव, जलवायु परिवर्तन और कीटों के हमलों के प्रति किसानों की संवेदनशीलता को कम किया जा सके। साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हो और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा मिल सके। इसके लिए हमारे देश की सरकार और किसानों दोनों को ही मिलकर काम करने की जरूरत है। साथ ही सरकारों को चाहिए कि वो ज्यादा से ज्यादा आजकल की कृषि पद्धतियों को किसानों तक पहुचाएं। वहीं किसान भी समझें कि पारंपरिक खेती से हटकर अगर वो कुछ नया करेंगे तो भले ही उन्हें एकदम से फायदा ना मिले लेकिन उन्हें आगे चलकर जरूर फायदे होंगे।

कृप्या प्रतिक्रिया दें
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