इस फल की खेती करने से आप हो जाएंगे मालामाल!

केंद्र सरकार देश के किसानों को बागवानी करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। किसान बागवानी करके अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। बता दें कि गूजबेरी या रसभरी (Gooseberries or Raspberries) एक नकदी फसल है। बाजार में गूजबेरी या रसभरी की बहुत ज्यादा डिमांड है। बाजार में यह फल 100 रुपए किलो से अधिक में जाता है। ऐसे में यदि आप इसकी खेती करते हैं, तो आप अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। चलिए जानते हैं इसके बारे में सभी महत्वपूर्ण बातें।

रसभरी का वैज्ञानिक नाम फ़ाइसेलिस पेरयूवियाना (Physalis Peruviana) है। ये छोटे पीले रंग के बेर होते हैं, जो साउथ अमेरिका से उत्पन्न हुए हैं। रसभरी दूसरे बेरों की तुलना में टमाटर और बैंगन से ज्यादा संबंधित हैं। इनका साइज कांच की गोलियों के बराबर होता है। ये साउथ अफ्रीका और यूरोप समेत दुनिया के दूसरे देशों में उगाए जाते हैं। ये फल बड़े पैमाने पर निर्यात भी किए जाते हैं।

गूजबेरी या रसभरी (Gooseberries or Raspberries) सोलेनेसी कुल से संबंध रखने वाला एक झाड़ीनुमा पौधा है। इसके फल में 4 से 10 ग्राम तक वजन होता है। यह छोटे टमाटर की तरह दिखता है। यह लाल-पीले रंग का होता है। स्वाद में यह खट्टा-मीठा होता है। इस फल में भरपूर मात्रा में पेक्टीन (0.9%) मौजूद होता है।

मिट्टी और तापमान

रसभरी (Gooseberries or Raspberries) की खेती अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में होती है। इसकी खेती लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। इस फल की खेती मैदानी और पठारी इलाकों में की जाती है। रसभरी की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच मान 5-6 अच्छा माना जाता है। रसभरी उत्तर भारत में रबी के मौसम में उगाई जाती है। यह पौधा न्यूनतम 5 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में बढ़ती है।

उन्नत प्रजातियां

ICAR के अनुसार, रसभरी (Rasbhari) की उन्नत खेती के लिए हेटमैन, इनकॉप्लम, लेडी मडोना इत्यादि मुख्य प्रकार हैं। सालाना फसल लेने के लिए इसके बीजों का प्रसारण किया जाता है। ज्यादा छोटे बीज होने के कारण इसकी सीधे बुआई करने में दिक्कत होती है। एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए 4 से 6 किलो बीज लग जाते हैं। इसकी सालाना फसल के लिए अक्टूबर महीने के द्वितीय पखवाड़े में बीज बोए जाते हैं। बुआई करने के 6-7 हफ्ते बाद जब पौधा 20-25 सेंटीमीटर ऊंचा हो जाए, आप तब इसे खेत में रोप दें।

खाद और फर्टिलाइजर 

पौधे को खेत में रोपने से पहले मिट्टी की जुताई करके भुरभुरा कर लें। आपको प्रति हेक्टेयर 20 टन गोबर की खाद और 3.5 क्विंटल सिंगल सुपर फॉस्फेट, 1.2 क्विंटल म्यूरेट ऑफ पोटाश और 1 क्विंटल यूरिया देना चाहिए। बता दें कि फूल खिलने के 55 दिनों के बाद इस पौधे का फल पक जाता है।

जब इसका फल हल्के हरे और पीले रंग का हो जाता है तब इसे तोड़ लेना चाहिए और सामान्य तापमान पर स्टोर करना चाहिए। आपको फल ज्यादा पकने से पहले ही तोड़ लेना है। इस फल की खेती इंटर-क्रॉप के रूप में होती है। इस फल से किसानों की अतिरिक्त कमाई हो जाती है। रसभरी का उत्पादन 4 से 6 टन प्रति हेक्टेयर हो जाता है।

पोषण का खजाना

रसभरी (Rasbhari) विटामिन- A, B और C का अच्छा सोर्स है। अन्य फसलों की तुलना में रसभरी में थायमिन और नियासिन ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें कैल्शियम, प्रोटीन और फॉस्फेरस भी अच्छी मात्रा में होते हैं। कई लोग इस फल को सलाद के तौर पर खाते हैं।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना 

आपको बता दें कि रसभरी (Rasbhari) की बागवानी के लिए सरकार राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (National Agricultural Development Scheme) के अंतर्गत 25,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत पर 50% की सब्सिडी दे रही है। आप इस अमाउंट को किस्तों में भी भर सकते हैं।

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