बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग: हमारे देश में किसान अलग-अलग फसलों की खेती करके बहुत अच्छी कमाई कर रहे हैं। कृषि उद्योग में सिर्फ फसलें उगाना ही नहीं आता है बल्कि मछली पालन और मुर्गी पालन जैसी चीजें भी शामिल हैं। इसलिए आज हम आपको मछली पालन से जुड़ी एक प्रगतिशील किसान की कहानी बताने जा रहे हैं। जिसने मछली पालन से लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों में कमाई की है। इस किसान ने मछली पालन का अपना विकसित मॉडल भी बताया है।
बिहार में पटना जिले के मयंक कुमार बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग करते हैं। इस युवा किसान ने हिंदी ऑनर्स से ग्रेजुएशन तो कर लिया है लेकिन उन्होंने अपने मछली पालन की जर्नी 12वी पास करने के बाद ही शुरू कर दी थी। मयंक ने बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग के लिए पहले हैदराबाद से ट्रेनिंग ली और फिर घर पर ट्रायल प्रोजेक्ट से शुरू किया।
क्योंकि इनके पास ना ही फंड था और ना ही घर से सपोर्ट मिल रहा था। सरकार भी तब साल 2019 में इस तरह की फिश फार्मिंग के लिए कोई स्कीम नहीं लाई थी। लेकिन जैसे ही छोटे से सीमेंट के टैंक से इन्हें अनुभव मिला। इन्होंने इसे आगे ले जाने का सोचा।
सरकार से मिली मदद
सरकार ने फिर जैसे ही इस तरह की फिश फार्मिंग शुरू की तो मयंक को 50 लाख रुपये का प्रोजेक्ट मिल गया। इसमें उन्हें 30 लाख रुपये की सब्सिडी मिल गई। मयंक बताते हैं कि उन्हें जो ट्रेनिंग मिली थी, उसमें उन्होंने बदलाव किया। उन्होंने बिहार में खुद से सबसे बड़ा टैंक बनवाया। उन्होंने बताया कि इन बड़े टैंको में ये फायदा मिलता है कि मेंटेनेंस कम पड़ता है। वहीं मछलियों को तैरने के लिए ज्यादा जगह मिलती है और उनकी ग्रोथ भी अच्छी होती है। मयंक के पास इस वक्त 6 टैंक लगे हुए हैं। ये 52 फीट X 52 फीट के हैं।
क्या है बायोफ्लॉक तकनीक
मयंक ने बताया कि ये तकनीक इजरायल से आई थी। इसे हाई डेंसिटी मछली के लिए अपनाया जाता है। इसमें छोटी जगह में ज्यादा मछली को पाला जाता है। चूंकि जमीन कम पड़ती जा रही है तो ये तकनीक काफी कारगर है। मयंक ने बताया कि तालाब में मछली पालने से लेबर कोस्ट ज्यादा आता है। मछली का खाना भी उसमें ज्यादा लगता है।
वहीं बारिश में तालाब में पानी बढ़ जाता है तो मछली भाग जाती हैं। वहीं सांप और पक्षियों से मछलियों को डैमेज भी होता है। जबकि इन टैंकों में मछलियां सेफ रहती हैं। उदाहरण के लिए इसमें तालाब के मुकाबले मछलियों का खाना भी डेढ़ किलो की जगह एक किलो ही लगता है। इसलिए मयंक मछली पालकों के लिए बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
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कितनी कमाई- फिश फार्मिंग
मयंक ने बताया कि उन्हें अपने ये 6 फिश फार्मिंग के टैंक बनाने में करीब 25 से 30 लाख का खर्च आया है। अब उनके ये टैंक आराम से 10 से 15 साल तक चल जाएंगे। अब इसमें मेंटेंस खर्च की बात की जाए जैसे की मछली बीज, इनका खाना और मशीनें तो इसमें छह महीने में करीब 15 से 20 लाख का खर्च होता है। और फिर जब वो मछली सेल करते हैं तो ये करीब 40 से 45 लाख रुपये में बिकती है। इसमें वो आराम से 50% काम मुनाफा निकाल लेते हैं।
मयंक ने बताया कि वो मछली के बच्चे कोलकाता से लाते हैं तो उस समय एक मछली का बच्चा करीब 10 ग्राम का होता है और चार से 5 महीने में ये 600 से 700 ग्राम का हो जाता है। उन्होंने बताया कि इस वजन की मछलियां बिहार में खूब बिकती हैं और इतना वजन का होते ही वो मछलियां बेचना शुरू कर देते हैं।
कौन सी किस्म की मछली पालें
मयंक ने फिश फार्मिंग इसलिए चुना क्योंकि इसकी डिमांड है। उन्होंने बताया कि फिश फार्मिंग में प्रोडक्शन कोस्ट और टाइम दोनों ही कम है। ऊपर से सरकार का सहयोग भी मिल जाता है। अब अगर बात की जाए कि मयंक कौन सी वैराइटी की फिश फार्मिंग करते हैं तो उन्होंने बताया कि बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग में किसान पंगा सियस, रूपचंद, तिलापिया, कवई, देसी मारुल, मांगुर और सिंगी वैराइटी का इस्तेमाल कर सकते हैं। फिलहाल मयंक ने रोहू कतला और पंगा सियम मछलियां अपने टैंक में डाली हुई हैं।
मयंक ने बताया कि उनके यहां मछली बेचने की कोई समस्या नहीं है। वो एक मछली 10 रुपये की खरीद पर लाते हैं और 5 से 6 महीने में उसके रखरखाव में वो करीब 50 रुपये और खर्च करते हैं। जबकि बड़ी होने पर इस मछली को वो 130 रुपये तक में बेचते हैं।
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मुफ्त में देते हैं ट्रेनिंग
मयंक ने बताया कि उनके यहां पर लोग बायोफ्लॉक मॉडल को देखने दूर-दूर से आते हैं। उन्होंने कहा कि उनसे कई लोग ट्रेनिंग ले चुके हैं और वो बिल्कुल फ्री में ये ट्रेनिंग देते हैं। मयंक ने कहा, ”आपने सुना होगा कि लोग कहते हैं कि हम 5 हजार रुपये लेते हैं, हम 10 हजार रुपये लेते हैं लेकिन हमारे यहां जो आता है, मैं मुफ्त में जानकारी देता हूं।”
उन्होंने ये भी बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक कई जगहों पर फेल हो रही है लेकिन इसकी वजह ये है कि लोग गलत जानकारी दे रहे हैं। कुछ लोग पैसा कमाने के चक्कर में किसानों को गलत ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। वरना बायोफ्लॉक बहुत बढ़िया है जिसे हमारी भारत सरकार ने भी बढ़ावा दिया है।
बायोफ्लॉक टैंक बनाने के लिए उन्होंने कहा कि इसमें 2 से 3 मीटर का स्लॉप होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन के लिए ब्लोअर हैवी लगवाना चाहिए। मछलियों को ऑक्सीजन अच्छे से चाहिए होता है। दरअसल तालाब की तरह ये टैंक नेचुरल नहीं हैं और इसके अलावा हाई डेंसिटी में मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं तो इसलिए ऑक्सीजन बराबर मात्रा में मछलियों को पहुंचनी चाहिए। टैंक में अमोनिया भी बनता है तो ऑक्सीजन देने से ये अमोनिया टैंक से बाहर आ जाता है। साथ ही उन्होंने कहा कि ध्यान रखना चाहिए कि पानी गंदा ना हो, और मछलियों के लिए जो खाना लाएं, वो अच्छी क्वालिटी का ही लाएं।
दिल से करें काम
मयंक कहते हैं कि उनकी उम्र 25 साल है और जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो उन्हें घर से भी सपोर्ट नहीं था लेकिन अब घर वाले इस काम को सपोर्ट कर रहे हैं। वहीं उन्होंने कहा कि उन्हें अंदर से खुशी मिलती है कि वो अपने गांव घर में रहकर ही इतनी कमाई कर रहे हैं, रोजगार के अवसर दे पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वो अब करोड़ों कमाना चाहते हैं।
मयंक ने युवाओं से भी अपील की है कि वो जो भी काम करें दिल से करें। इसके अलावा उनकी अगर किसी को जरूरत हो तो वो पूरी तरह से मदद के लिए तैयार रहते हैं।
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