देशभर में इन दिनों खेती किसानी की बातें जोर पकड़ रही हैं। हमारे सामने कई ऐसे मामले भी हैं जहां विदेश से लौटकर लोग खेतीबाड़ी में शामिल हो रहे हैं। इन्हीं में से एक रंजीत मंगत भी हैं जिन्होंने कनाडा से वापस आकर मेरठ में अपना इको फार्म हाउस मंगत फार्म शुरू किया। यहां वो लोगों हॉबी फार्मिंग सिखाते हैं। आज की तारीख में इनके पास दो फार्म हैं। एक उत्तर प्रदेश के मेरठ में और दूसरा उत्तराखंड के कानाताल में। इनके फार्म में हर तरह की सब्जियां उगाई जाती हैं जैसे आलू, टमाटर, मिर्च, गोभी, धनिया, बैंगन इत्यादि। दोनो फार्म में काफी फल भी हैं जैसे आड़ू, सेब, केला इत्यादि। लोगों को इनकी ऑर्गनिक खेती भी काफी पसंद आ रही हैं। हल्दी तो ये प्री बुकिंग में उगाते हैं। यानी हल्दी उगाने से पहले ही इनके पास ऑर्डर आ जाते हैं।
रंजीत का इको-फार्म इस लिहाज से भी कमाल है कि यहां अगर किसी को खेती किसानी करनी है तो वो लीज पर अपना फार्म देते हैं। उनकी पूरी फैमिली को मिलाकर उनके पास करीब 40 एकड़ फार्म की जगह है। उत्तराखंड के कानाताल में वो अपना होम स्टे भी चलाते हैं। लेकिन रंजीत को नेचर और खेतीबाड़ी का इतना शौक कैसे रहा और वो लोगों को कैसे प्रेरित कर रहे हैं। आइए जानते हैं।
रंजीत चौधरी के दादा और पिता ने मेरठ में खेती की जमीनें ली थीं। हालांकि दादा जी और पिता जी दोनों ही सरकारी नौकरी में थे। लेकिन बचपन में रंजीत को पढ़ने के लिए पंजाब भेज दिया गया था जहां ज्यादातर बच्चे किसान फैमिली से थे। इसके बाद बड़े होने पर 1992 में उन्होंने एनडीए का एग्जाम जरूर दिया लेकिन पिता की तरह आर्मी में नहीं गए। उन्होंने पढ़ाई तो जमकर की। बीकॉम, लॉ, एमबीए करके उन्होंने एड एजेंसी में काम किया। दिल्ली में नौकरी थी। लेकिन उनका इस भीड़भाड़ वाली जगह पर मन नहीं लगा। रंजीत कहते हैं, ”दिल्ली की भागदौड़ अच्छी नहीं लगी फिर दोबारा फार्म ने खींच लिया।” इस दौरान वो अपनी खेती किसानी की जानकारी लोगों के साथ साझा करते रहते थे। उनकी नेचर और कृषि में बहुत गहरी रुचि रही है।
कोरोना से शुरू की फुलटाइम फार्मिंग
साल 2018 में रंजीत कनाडा चले गए। वहां उन्होंने फार्म सुपरवाइजर के तौर पर काम शुरू किया। लेकिन कोविड आ गया और वो फिर वापस मेरठ आ गए। वापस आकर उन्हें खाने की अहमियत ज्यादा समझ आई। उन्होंने देखा कि जब लोगों को कोरोना में खाने के लाले पड़ गए थे तो उनके पास फार्म में खाने के लिए ताजी सब्जियां थीं। उन्होंने फिर ठान लिया कि अब फार्मिंग ही उनका पेशा बनेगा जिसमें उन्हें सबसे ज्यादा संतुष्टि भी मिली थी।
क्या है फार्म की खासियत?
रंजीत के इको फार्म में तमाम तरह की सब्जियां और फल उगाए जाते हैं। वो फार्म में खेती बाड़ी फ्री में सिखाते हैं। उनसे आप फार्मिंग की सलाह फ्री में ले सकते हैं। लेकिन अगर आपको पौधे चाहिए या उनके फार्म पर आपको खेती करनी है तो उसके चार्ज लगते हैं। रंजीत कहते हैं, ”हमारे फार्म पर आइए देखिए समझिए, ये सब फ्री। लेकिन हां इसके बाद अगर आपको कुछ जमीन लीज पर चाहिए, जिसमें आप हॉबी फार्मिंग करना चाहते हैं तो फिर उसके पैसे हैं। नर्सरी चाहिए पौध चाहिए। वो हम बहुत मामूली सी कोस्ट पर देते हैं।”
फार्म से मिलता है रोजगार
वैसे तो रंजीत के दोनों फार्म प्रत्यक्ष तौर पर उनके साथ 4-5 लोग जुड़े हैं लेकिन सीजन के हिसाब से रंजीत अपने आसपास के किसानों को अपने फार्म पर बराबर काम देते रहते हैं। जैसे आलू खोदने के टाइम पर या फसल कटाई पर लोग काम करने आते हैं।
रंजीत से फार्मिंग की प्रेरणा ले रहे लोग
उनके फार्म पर अब तक सैंकड़ों लोग आ चुके हैं और वो इनमें से तमाम लोग उनसे प्रेरित होकर अपने स्तर पर छोटी छोटी चीजें कर रहे हैं। जैसे घर पर ही सब्जियां उगाना। रंजीत बताते हैं कि एक बिजनेसमैन उनसे प्रभावित हुए और उन्होंने दो बीघे जमीन लेकर अपनी फार्मिंग शुरू की। वकील और दिल्ली के सीए उनसे सलाह लेकर ग्रो बैग्स में सब्जियां उगा रहे हैं। यहां तक कि कैनेडा से भी एक शख्स ने उनसे बैंगन की फसल उगाने के बारे में पूछा था। रंजीत खुलकर अपनी जानकारी लोगों से साझा करते हैं। उन्हें अच्छा लगता है कि जब लोग नेचर और खेती किसानी को तवज्जों देते हैं।
अगली पीढ़ी भी सीखे फार्मिंग
रंजीत ने जब ये इको फार्म शुरू किया तो उनके फार्म में एक बच्चा ऐसा आया जिसे ये नहीं पता था कि राजमा का पौधा होता है, उसे लगता था कि वो सीधे फैक्ट्री से आते हैं जैसे चॉकलेट बनती है। वहीं बैंगलोर से आए एक बच्चे ने पहली बार फल तोड़ने का अनुभव किया था और वो उनके यहां आकर बहुत खुश था। रंजीत चाहते हैं कि हर इंसान को ये पता रहे कि उसकी प्लेट तक उसका वो खाना कब औ कहां से आता है। ताकी इंसान खाने की कद्र कर सके और प्रकृति से जुड़ा महसूस करे।
इस फार्म में आकर तो कोरोना के सबसे लंबे सर्वाइवर को भी आकर अच्छा लगा। वो अब रेगुलर यहां आते हैं। वो एक साल तक घर पर रहे थे। उन्हें ऑक्सीजन की जरूर पड़ती थी। लेकिन मेरठ में फार्महाउस पर आकर उन्हें नेचर से काफी आराम मिला। डॉक्टर ने ही उन्हें सलाह दी थी कि वो प्रकृति के बीच जाएं।
फैमिली से मिला फुल सपोर्ट
खेती किसानी हमेशा फायदा का सौदा नहीं माना जाता। लेकिन रंजीत की फैमिली को इसमें बहुत संतुष्टि मिलती है। उनकी पत्नी भी एडवोकेट हैं लेकिन वो अब फुलटाइम फार्मिंग में जुटी हैं। वो जब पेड़ से फल या सब्जियां तोड़ती हैं तो उन्हें बहुत सुकून मिलता है। उनके दो बच्चे हैं। जिनमें से बड़े बेटे ने हॉस्पिटैलिटी में एडिमिशन लिया है और आगे वो भी अपने पापा के खेतीबाड़ी के बिजनेस को आगे ले जाना चाहता है।
हालांकि रंजीत ये ने भी बताया कि अगर कोई इस तरह से इको फार्मिंग शुरू करना चाहता तो इसमें पहली शर्त यही है कि अपनी जमीन होनी चाहिए। क्योंकि फार्मिंग में लागत अच्छी खासी आती है। और किसान को कई दिक्कतों से अकसर जूझना पड़ जाता है।