दिल्ली छोड़ दो भाइयों ने पहाड़ों में शुरू किया मशरूम उगाना, लाखों की कमाई के साथ लोगों को मिल रहा रोजगार

हमारे देश के तमाम राज्यों में पलायन एक बड़ी समस्या है। राज्य के युवा रोजगार के लिए गांव छोड़कर पैसे कमाने के लिए बड़े शहरों में चले जाते हैं। उत्तराखंड का भी कुछ ऐसा ही हाल है। लेकिन यहां के दो पहाड़ी भाई जो दिल्ली में रह रहे थे, उन्होंने साल 2017 में दिल्ली छोड़कर वापस अपने गांव आने का फैसला किया और दोनों ने गढ़वाल के चंबा स्थित अपने गांव डडूर में वापसी कर ली। जबकि सुशांत उनियाल दिल्ली की प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे थे और उनके बड़े भाई प्रकाश उनियाल बैंक में जॉब कर रहे थे।

हालांकि सुशांत और प्रकाश ऐसे ही नहीं लौट आए थे। उनके पास प्लान था कि वो यहां आकर क्या करेंगे। सुशांत ने हमसे बात करते हुए बताया कि पहाड़ों में लौटकर उन्होंने मशरूम उगाना शुरू कर दिया। उन्होंने देखा कि गांव में कई घर खाली और खंडर हो चुके थे। लोग वहां से पलायन कर चुके थे। इन्ही में से कुछ घरों में दोनों ने ढींगरी मशरूम उगाना शुरू किया। दोनों को इस काम में थोड़ी सफलता मिली तो इन्होंने अपने पंख पसारने शुरू कर दिए।

सुशांत उनियाल

गढ़वाल की सबसे बड़ी मशरूम यूनिट
सुशांत बताते हैं कि साल 2019 में उन्होंने उद्यान विभाग को अपनी योजना सौंपी और इसके लिए आर्थिक मदद मांगी। जिसके बाद उन्हें मिशन फॉर इंटीग्रेटेड हार्टिकल्चर डेवलपमेंट (MIDH) स्कीम के जरिए 8 लाख रुपये की सब्सिडी दी गई और 18.68 लाख रुपये का लोन उन्हें मिल गया। इसके बाद तो इन भाइयों ने देखते ही देखते गढ़वाल की सबसे बड़ी मशरूम यूनिट खड़ी कर दी।

मशरूम ही क्यों?
सुशांत का कहना है कि उत्तराखंड में मशरूम का व्यवसाय कम लागत में किया जा सकता है क्योंकि यहां का जो मौसम और वातावरण है वो प्राकृतिक तौर पर मशरूम की खेती के लिए अनुकूल है। उन्होंने कहा, ”कोई एयरकंडीशन लगाने की जरूरत नहीं है, कोई ऑटो हैंडलिंग मशीन लगाने की जरूरत नहीं है। तो आप यहां बिल्कुल प्राकृतिक तौर पर 8 से 10 महीने ढिंगरी मशरूम की अलग अलग प्रजातियां उगाकर खेती कर सकते हैं।” इसके अलावा उन्होंने बताया कि पहाड़ों पर अगर फसल उगाई जाती है तो उसमें बंदरों और जगली सुअरों द्वारा फसल को नुकसान पहुंचाने का खतरा बना रहता है। लेकिन मशरूम को बंद कमरें को बाहरी जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचा पाते।

टिहरी, उत्तराखंड

कितनी कमाई?
उनियाल भाइयों ने जब मशरूम उगाने की शुरुआत की थी तो रोजाना वो 2-3 किलो ही मशरूम उगा रहे थे लेकिन आज की तारीख में इनके यूनिट से 100 किलो मशरूम का उत्पादन हो रहा है। पहले तो कमाई सिर्फ कुछ हजार ही थे लेकिन अब इनका टर्नओवर 24 से 25 लाख रुपये सालाना हो गया है। बता दें कि जब कोरोना में हर तरफ दर्द और मायूसी छाई थी। कंपनियों से लोगों की नौकरियां जा रही थीं, तब भी इन्होंने साल में 10 लाख का टर्नओवर कर लिया था।

रोजगार बढ़ा, पलायन कम हुआ
सुशांत और प्रकाश ने करीब 8 लोगों को अपने साथ रोजगार दिया है लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर 15 से 20 और लोगों को भी उनके जरिए रोजगार मिल रहा है। सुशांत का कहना है, ”हमारे पास 100 से ज्यादा लोग आए, जिन्होंने हमसे मशरूम के बारे में जानकारी ली। सरकार के भी कुछ प्रोग्राम चलते रहते हैं। उनके द्वारा हमारे पास जो किसान आते हैं, हम उन्हें भी गाइड करते हैं।”

सुशांत भाइयों को देखकर काफी लोगों ने मशरूम उगाना शुरू कर दिया है। सुशांत ही एक कुलीग रहीं हिमानी बिष्ट ने भी देहरानदून के विकास नगर में मशरूम की यूनिट शुरू की है। दोनों का ये काम लोगों को प्रेरणा भी दे रहा है और रोजगार का साधन भी बन रहा है।

मार्किंटिंग भी करते हैं मदद
किसान अगर फसल उगा भी लेता है तो उसके लिए सबसे बड़ी दिक्कत मार्किटिंग की होती है। सुशांत अपना मशरूम तो बेच ही रहे हैं साथ ही वो बाकी लोगों की भी इसमें मदद कर रहे हैं। दोनों उनियाल भाई लोगों को मशरूम उगाने के साथ साथ इसकी मार्किटिंग के बारे में भी बताते हैं। अगर कोई ऐसा करने में असमर्थता जताता है तो ये दोनों खुद ही दूसरों का मशरूम बेचने में मदद करते हैं।

पीएम मोदी ने की है तारीफ
सुशांत और उनके भाई प्रकाश ने जिस तरह से पलायन को रोकने का तरीका निकाला और लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया कराए हैं। उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी खुश हुए और एक ऑनलाइन जूम मीटिंग में उन्होंने सुशांत की तारीफ की। पीएम ने कहा कि वो जब भी उत्तराखंड जाते हैं तो कहते हैं कि पहाड़ों का पानी और जवानी यहां के काम नहीं आ पा रहा है लेकिन सुशांत और उनके भाई ने ये कर दिखाया है। पीएम को बहुत अच्छा लगा कि दिल्ली में पढ़ाई और नौकरी करने के बाद सुशांत वापस अपने गांव लौट आए हैं।

सुशांत ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मशरूम की खेती की जागरुकता के लिए अपना एक व्लॉग चैनल भी चला रहा है। पहाड़ी डेरा यूट्यूब के जरिए उन्होंने अपनी तमाम वीडियो में मशरूम को उगाने के छोटे से छोटे प्रोसेस के बारे में भी बताया है। उनकी मीडिया की पढ़ाई यहां काम आ रही है। जहां कोर्पोरेट लाइफ में अपने लिए टाइम ही नहीं मिलता है वहां सुशांत मशरूम उगाने के साथ साथ अपना फोटोग्राफी का शौक भी पूरा कर रहे हैं।

सुशांत और प्रकाश जैसे पढ़े-लिखे युवा आज गांवों की रूपरेखा बदल रहे हैं। उन्होंने ना सिर्फ अपनी आमदनी का एक जरिया खड़ा किया है, बल्कि उत्तराखंड के किसानों को एक जरिया दे दिया है जिससे कि युवा अपने गांवों अपने राज्य में ही रहकर रोजगार सृजन कर सकते हैं। किसानों को अकसर गरीब और बुरे हाल वाला ही दिखाया जाता है लेकिन इन जैसे युवा देश की किसानों की छवि बदल रहे हैं।

 

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